गुलामी का हलुआ !
विदेशों में ‘आज़ाद हिंद फ़ौज’ और देश के लिए ‘फ़ारवर्ड ब्लॉक’ की रचना उन्हीं के हेत्वर्थ था । देश उनके भी अभिन्न प्रयास से अंग्रेजी सत्ता से मुक्ति पाई । आज लोग इनकी तारीफ़ तो करते हैं, किन्तु लोग सुभाषबोस और भगतसिंह जैसे शख़्स को पुत्ररूप में देखना नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें ऐसे पुत्र नहीं चाहिए, बल्कि डॉक्टर -इंजीनियर जैसे पुत्र चाहिए, जो परिवार के लिए ‘बैंक’ बने, न कि राष्ट्रभक्त ‘सोशल एक्टिविस्ट’ ! परतंत्रता को लेकर प्रेमचंद ने ‘गोदान’ में लिखा है- ‘गुलामी के हलुवे से अच्छा सूखे चने चबाना ठीक है’ । तारीख 23 जनवरी नेताजी सुभाष’दा यानी सुभाषचंद्र बोस की जन्म-जयंती है। उनकी मृत्यु से संबंधित और मृत्यु तिथि को लेकर अबतक कोई प्रामाणिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं हो पाया है।
ध्यातव्य है, सुभाष’दा के गुमनामी बाबा होने को लेकर ‘सत्याग्रह’ में एक रपट प्रकाशित है, यथा- फैजाबाद शहर के सिविल लाइन्स इलाके में स्थित राम-भवन के बारे में 16 सितंबर 1985 से पहले न के बराबर लोग ही जानते थे । उस मकान में लंबे समय से साधु जैसे लगने वाले एक बुजुर्ग रहते थे जिनके बारे में स्थानीय निवासियों को कुछ खास जानकारी नहीं थी । जिस दिन उनकी मृत्यु हुई और अंतिम संस्कार के बाद उनके कमरे को खंगाला गया तो कई लोगों की आंखें खुली की खुली रह गई। उनके कमरे से लोगों को कई ऐसी चीजें मिली, जिनका ताल्लुक सीधे तौर पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस से जुड़ता था । इनमें नेताजी की पारिवारिक तस्वीरों से लेकर आजाद हिंद फौज की वर्दी, जर्मन, जापानी तथा अंग्रेजी साहित्य की कई किताबें और नेताजी की मौत से जुड़े समाचार पत्रों की कतरनें शामिल थीं।
इसके अलावा वहां से और भी कई ऐसे दस्तावेज बरामद हुए जिनके आधार पर एक बड़े वर्ग ने दावा किया कि वे कोई आम बुजुर्ग नहीं बल्कि खुद नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे। इस दावे को भी सही साबित नहीं किया जा सका, अपितु इसने तो नेताजी की गुमनामी की गुत्थी को और भी उलझा दिया । इससे पहले बहुत से लोग एक विमान हादसे को उनकी मृत्यु का कारण मानते थ, तो कई को लगता था कि वे किसी बड़ी राजनीतिक साजिश का शिकार हुए हैं !