पुस्तक
1-
पुस्तक ने इंसान को,दिये अनूठे ज्ञान।
पुस्तक कहती है कभी पशु सा था इंसान।
पशु सा था इंसान ,जंगलो में रहता था ।
पशुओं को ही मार पेट अपना भरता था।
पशुता शेष बची मानव में दिखती अबतक,
युध्दों का इतिहास संजोये रोती पुस्तक ।
2-
पुस्तक कब मरती भला ?,मर जाते है लोग ।
प्रलय ,महामारी , तथा प्राण छीनते रोग ।
प्राण छीनते रोग ,सृष्टि जाती है मारी ।
लिए अमर इतिहास ,पुस्तकें जीवित सारी,
यह नाश्वर संसार याद रक्खेगा कब तक ?
रचो कोई इतिहास, अमर कर देगी पुस्तक।
3-
पुस्तक हो मानस सरिस ,कवि हों तुलसीदास।
गीता जैसा ज्ञान हो, करे मोह का नाश ।
करे मोह का नाश ,धर्म से नेह कराये ।
इसीलिए तो पुस्तक साँचा मीत कहाये ।
ऐ मानव! जब मोह सताये तुझको भ्रामक ।
तुझे राह दिखालाये गीता जैसी पुस्तक ।
4-
पुस्तक दूती शांति की ,कभी कराती युद्ध ।
चलकर पुस्तक पंथ पर मूढ़ हो गये बुद्ध।
मूढ़ हो गये बुद्ध , ज्ञान जग में फैलायें ।
देकर सौरभ ज्ञान ,जगत बगिया महकायें।
खून बहाते, आपस में लड़ते ,नर नाहक ।
हिंसा का उपदेश, अगर दे कोई पुस्तक ।
5.
पुस्तक हो गर धर्म की जिससे चले समाज।
बात कहे विद्वेष की , बने विश्व पर गाज ।
बने विश्व पर गाज,शांति का गला दबाये ।
मानव बन हैवान ,रक्त की नदी बहाये ।
कहें ‘दिवाकर’ हाय विश्व रोयेगा कब तक ?
माँगे सारा विश्व अंहिसा की एक पुस्तक ।
– डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी