ग़ज़ल
खेल तो हरि हाथ में है सब नितान्त
मन मुताबिक काम होता कब नितान्त
अब भला वो क्यों यहाँ पर आएगा
जब निकल उसका गया मतलब नितान्त
यूँ तो उसने प्यार को ठुकरा दिया
फिर भी हम मिल आते हैं जबतब नितान्त
दूसरों के ऐब ही दिखते सदा
अपनी खामी दीखती है कब नितान्त
हाँ नितान्त उनसे पडा है वास्ता
आए दिन अब देखना करतब नितान्त
— समीर द्विवेदी नितान्त