कहर पे कहर, ये कैसा पहर
फिलहाल तो ताउते चक्रवाती तूफान के कहर तथा इजरायल के द्वारा हमास पर ढाए जा रहे कहर की चर्चा पहले पायदान पर है।मगर इन सब के बीच भी कोरोना का कहर अपनी बढ़त बनाए हुए है।आज इसका विकेट गिरा तो कल उसका।आज यह टपका तो कल वह । टीवी और अखबारों में कोरोना कहर के आंकड़े सुन और पढ़कर हम जैसों की सांस अटक रही है। आॅक्सीजन लेबल कम हो रहा है। पता नहीं आँकडे़ एकत्रित करने वालों और प्रसारित करने वालों की साँस फूलती या अटकती भी है या नहीं। सबसे बड़ी बात है,आज देश में इस कोरोना-कहर के कई ‘बाई प्रोडक्ट कहर’ भी नंगा नाच मचाए हुए हैं। उसमें नंबर वन पर है पुलिस एवं ट्रैफिक पुलिस का कहर। मैंने सुना, पुलिस कहती फिर रही है, मार-मार कर पिछवाड़ा लाल कर दूँगा मगर किसी को कोरोना नहीं होने दूँगा। मैंने देखा भी पिछले पाँच दिनों से मेरे पड़ोसी मित्र अपने पिछवाड़े की सिकाई कर रहे हैं।दयावश कुछ लोगों को पुलिसवाले सिर्फ माँ-बहन करके भी छोड़ देते हैं,मगर उन्हें बिल्कुल नहीं छोड़ते जो पुलिस कार्रवाई को पुलिसिया-जुल्म समझकर विरोध करते हैं। ये उन्हें अपनी गाड़ी में इज्जत से बैठाते हैं और चल पड़ते हैं। बाद में पता चलता है,ये विरोधी सुताई सहित पाँच-पाँच हज़ार का जुर्माना भरकर घर वापस आये।काश कि उन्हें पहले पता होता, लोकतंत्र में सरकार के मुखिया का विरोध करना सुरक्षित है,मगर सरकार की पुलिस का विरोध करना नहीं। एंबुलेंस वालों या शव-वाहन वालों के कहर का सामना भी किसी अंधे-कुएँ में डूबने से कम नहीं।जब परिजन बीमार पड़ते हैं,व्यक्ति मौत की घड़ियां गिन रहा होता है, तब ये उस आपदा को एक बड़े अवसर के रूप में ऐसे लपकते हैं जैसे भूखे भेड़िए। अस्पतालों का कहर आमजन पर ऐसा पड़ रहा है कि लोग किसी भी दामपर सोना ही नहीं अपने घर-मकान और फ्लैट तक बेचने को मजबूर हैं। छोटे-छोटे नर्सिंग होम वालों ने भी नोट गिनने की मशीन खरीद ली है।
अस्पतालों में बेड और वेंटिलेटर की बोली ऐसे लग रही है, मानों आईपीएल वाले क्रिकेटरों की बोली लगा रहे हों।कोई एमएलए एमपी, मंत्री-संत्री की पैरवी काम नहीं आ रही। कालाबाजारियों और जमाखोरों के कहर के नाम पर हम ,चावल,दाल,प्याज,तेल इत्यादि के व्यापारियों की चर्चा सुनते रहे थे।इस कोरोना-काल के जमाखोरों और कालाबाजारियों की लिस्ट में नेता, मंत्री, डाॅक्टर,नर्स जैसे लोग शामिल हो गए हैं, और ये आॅक्सीजन सिलेंडर,दवा, इंजेक्शन,आॅक्सीमीटर इत्यादि की कृत्रिम कमी पैदा कर जबरदस्त कहर ढाये हुए हैं।
श्मशान घाट में मिलने वाली लकड़ियां, बिजली के शवदाहगृह, शवों की लंबी लाइन भी कहर के विषय हो जाएंगे ऐसा सपने में भी किसी ने नहीं सोचा था।अवसाद एवं बेरोजगारी सहित इस वक्त पचासों प्रकार के जो कहर देश में फैले हुए हैं,उसे देखकर कभी-कभी विचार बनता है,पीएम,सीएम एवं डीएम की हिटलरशाही के इस दौर में हमारे देश और उसकी निरीह जनता को पता नहीं नरक में भी जगह मिलने वाली है या नहीं?
— अजय कुमार प्रजापति