लघुकथा

वक्त

“हेलो ..हेलो…? मैं अंजली बोल रही हूं”

“हां बोलो…” रूखे स्वर में जवाब दिया ।
“अभी भी नाराज हो मुझसे …?” अंजलि नर्म स्वर में कहा ।
“नहीं तो…।
“नाराज नहीं हो तो किसी और लड़की से सगाई क्यों कर रहे हो …?”
“तो क्या करूं …?” आवाज में अभी रूखापन था ।
“एक बार तो मुझसे कुछ पूछ लेते ..।”
‘क्या पूछता …? तुम्हारे पास तो समय ही नहीं रहता कि कुछ बात कर सको ।” राकेश ने फोन काट दिया ।
“हेलो ….हेलो ….”अंजलि फोन पर आवाज देने लगी मगर राकेश फोन काट चुका था । अंजलि बिस्तर में धम्म से गिर पड़ी । वह फफक फफक कर रोने लगी कितना वादा किया था कितने सपने दिखाए थे दगाबाज दगा दे गया एक बार भी मेरे बारे में नहीं सोचा । आंसुओं से तकिया भींगने लगे थे । वह रोए जा रही थी । “टिंग टिंग” मैसेज आया । अंजलि रोते  हुए फोन का मैसेज पढ़ने लगी “हमने तीन साल  बस वक्त बर्बाद किया है, तुम्हें मेरी फिक्र थी ना मेरे प्यार की तुम्हें तो बस काम और मजबूरी ही दिखाई  दी । एक बार भी तुमने यह नहीं सोचा कि थोड़ा वक्त देकर बिगड़ते रिश्ते को सुधारा जाए ।  तुम्हें तो बस यही लगता था कि समय के साथ सब ठीक होगा हो जाएगा लेकिन मेरे बातों पर कभी गौर किया ही नहीं । देखो अंजली हमने तो रिश्ता बनाया था  मगर तुमने समय से पहले ही रिश्ते को मरने के लिए छोड़ दिया ऐसा नहीं कि मेरा आज का फैसला है फैसला तो उसी दिन हो गया था जब मैं अकेला हो गया था तब भी तुम्हें मेरी याद नहीं आई  खैर जो भी हो गया सो गया । मैंने सगाई का फैसला कर लिया है । तुम भी अपनी पसंद से शादी कर लेना ।”
— भानुप्रताप कुंजाम ‘अंशु’