जिंदगी का क्या भरोसा
जिंदगी का क्या भरोसा, आज है या कल तलक।
सांस चलती है हमारी, और कितने पल तलक।
चार दिन की जिन्दगी में, चार युग की मौज हो ।
बात कांटों से निकलकर, जाती है मखमल तलक।
प्रेम की भाषा गज़ब है, लूट ले सबका हिया।
पत्थरों के दिल पिघलते, हारते हैं खल तलक ।।
पल मिले जो मौज कर ले, फिर मिलें या कब मिलें।
मोतियों के फेर में क्यों- डूबते हो तल तलक।
शूल को भी फूल समझो, पग बढ़ाते ही चलो।
इंतजारी में नहीं पहुंचा कोई भी हल तलक ।।
प्रेम, खुशियां, दोस्ती, परहित हृदय में जन्म लें।
रूह तब ही पहुंच पाती मुकम्मल ग़ज़ल तलक।।
याद आएंगे बहुत हम, जब न होंगे सामने।
आंसुओं में डूब जाएंगे, उपल-मरुथल तलक ।।
— सुरेश मिश्र