कविता

दीप

दीप बन कर स्वयं प्रकाश दो
तुम उजाला का दान दे दो,
एक दीपक ही अकेला
घोर तम को दूर करता।

यदि सकल्प शक्ति तुम में है
मुस्किलों का मुकाबला खुद करो,
नेह के नित तेल से
जिन्दगी का दीप तुम जलाते रहो।

प्रेम जीवन का अमृत है
सभी से प्रेम अपना बांटते रहो,
प्रेम का व्यवहार ही तो है
जो दूरियों को दिलों से दूर करता है।

मानव को हमेशा प्रेम बरसाना है
दया और शील से भरपूर होना चाहिये,
दूसरों के दुख में साथ रहना चाहिये
वहीं महा मानव कहा जाता है।

परहित ही सबसे बड़ा धर्म है
श्रेष्ठ मानव का यही परम कर्तव्य है,
हमको सदा सद् मार्ग पर चलना है,
औरों के लिये भी उजाला बन सकते ।

— कालिका प्रसाद सेमवाल

कालिका प्रसाद सेमवाल

प्रवक्ता जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, रतूडा़, रुद्रप्रयाग ( उत्तराखण्ड) पिन 246171