सामाजिक

पारिवारिक व्यावहारिकता: एक विवेचन

आज अक्सर परिवार/समाज में कई प्रकार की विसंगतियां देखने व सुनने में आती रहती हैं, उन्हीं में से एक विसंगति, जिससे कि बच्चों के बचपन की खुशियां तो जाती ही हैं, उनका भविष्य भी अंधकारमय हो जाता है, वह यह है कि- यदि किसी व्यक्ति अथवा परिवार का अपने ही कुटुम्ब या पड़ोस के किसी अन्य परिवार या व्यक्ति से किसी प्रकार से कोई विचार नहीं मिलते या अकारण ही तथा आपसी अहंकार व दुर्भावनावश एवं अज्ञानता के दुष्प्रभाव से दुश्मनी/शत्रुता का व्यवहार बढ़ता है, तो वे अपने-आपस के सुख-चैन को बर्वाद कर देते और दुराग्रह से ग्रसित होकर दुःख व परेशानियों तथा अकारण असंतोष को जन्म देते ही हैं, साथ ही इसमें सबसे दुखद पहलु यह देखने-सुनने को मिलता है कि वे अपने जैसे इस दुराचारण के बीज अपने बच्चों के कोमल में मन में बोने से भी नहीं रूकते हैं।
विष्णु शर्मा द्वारा लिखित नीतिशास्त्र हितोपदेश में उल्लेख मिलता है कि-
माता शत्रु पिता बैरी, येन बालो न पाठित:।
न शोभयते सभा मध्ये हंस मध्ये वको यथा।।
आज के परिप्रेक्ष्य में इसका आशय यह होता है कि जिन मां बाप ने अपने बच्चों को सुसंस्कारित नहीं बनाया, वे अपने बच्चों के शत्रु और घौर बैरी हैं। ऐसे मां-बाप दुश्मन तो हैं ही वे अपने आप में नरकगामी भी हैं, क्योंकि उन्होंने उपरोक्त वर्णित शिक्षा देकर कई लोगों/परिवारों का जीवन कष्टमय बनाया है। आज सभी माता पिता अपने बच्चों को अच्छे से अच्छे विद्यालयों में भेजकर उन्हें रोजगारपरक ज्ञान अवश्य दें रहे हैं, लेकिन परिवार व समाज में कैसे रहना है उसे नहीं समझा पा रहे हैं, जो बच्चों को सामूहिक आत्मीय आहार-व्यवहार से दूर करता जा रहा है। समाज के लिए यह बहुत घातक साबित हो रहा है।
हमारे दृष्टिकोण से वे मां-बाप अपने बच्चों के भविष्य के प्रेम-स्नेह व आत्मीयता को छिनने के उतने ही बड़े दुश्मन होते हैं, जितना कि देव और दानव आपस में। जो मां-बाप अपने लाडलों को बालपन में अपनी अंधी ममता (जिसे ममता तो कतई नहीं कहा जा सकता है, अपितु शत्रुता ही कहना अधिक उपयुक्त होगा) के अंधेरे आंचल में बच्चों के जायज-नाजायक मांग/इच्छाओं को बिना सोचे-समझे पूरी करते रहते हैं तथा बालपन में नासमझी के कारण बच्चों द्वारा कुछ गलत कार्य को बच्चा है कहकर नजरअंदाज कर देते हैं, वे बच्चों के  सुखद व सफल भविष्य के साथ भयानक खिलवाड़ करते हैं। वे मां बाप इस प्रकार से लाड़-प्यार नहीं अपितु बच्चों को बुरी आदतों का धीमा जहर पिलाते हैं, क्योंकि बच्चों को सही मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करने तथा अच्छी आदतों की ओर ले जाने वाले मां-बाप अच्छे व सुशिक्षित तथा सभ्य कहे जा सकते हैं। क्योंकि बच्चों का मन कोमल व साफ-सुथरा होता है, उसमें जैसे संस्कार डालो वैसे ही वे बनते जाते हैं। मां-बाप की अव्यावहारिक शिक्षा तथा अन्धी ममता से आगे बढ़े बच्चे भविष्य के बिगड़ैल युवा-युवतियां होती हैं, जो संबंधित समाज के लिए अहितकारी तो होते ही हैं, साथ ही देश के लिए बहुत ही नुकसान दायक साबित होते हैं। मां बाप कृपया इन बातों से बचें और अपने पाल्यों को सुसंस्कार देकर अपने परिवार तथा देश/समाज हित में अच्छे योगदान दें।
अक्सर यह देखने में आता है कि जिन मां-बाप द्वारा अपनी हीन भावना व मानसिकता के कारण अपने बच्चों में परिवार या कुटुम्ब के प्रति इस प्रकार की दुर्भावनाओं का बीजारोपण किया जाता है, आगे चलकर उन बच्चों में जब वे बड़े युवा/प्रौढ़ होते हैं, वे कहीं भी आपसी सौहार्द्रपूर्ण सामंजस्य नहीं बिठा पाते हैं, जिससे वे स्वयं तो अपने कर्मों से दुःखी होंगे ही साथ ही वे अपने ही परिवार (पति है तो पत्नी और पत्नी है तो पति) के साथ ही वैचारिक मेल नहीं बना पाते हैं, इससे उनका पारिवारिक जीवन लगातार असंतोष व परेशानियों से ग्रस्त हो जाता है।
इसके लिए समझदार, हम उनको ही नहीं मान सकते, जो विद्यालयी अध्ययन से परिपूर्ण हैं, अपितु वे समझदार जो अनपढ़ होते हुए परिवार की खुशहाली की परिभाषा को भली-भांति जानते-समझते हैं। उनसे अपेक्षा है कि यदि इस प्रकार की दुर्भावना से बचें तथा अन्यों को भी जागृत करें, ताकि किसी बच्चे का भविष्य व्यवहार की परेशानियों के दल-दल में फंसने से बचे।
उन समझदार दंपतियों से भी अपेक्षा है कि वे स्वयं भी अपने बच्चों को इस प्रकार की भावना का शिकार न बनायें और स्वयं भी यदि तुम्हारे मां-बाप ने तुम्हारे मन में बालपन में या आज भी इस प्रकार परिवार यदि पड़ोस के प्रति गलत आचरण की सीख दे रखी या देते हैं तो कृपया वे अपने सुखद व खुशहाल पारिवारिक जीवन पर उसकी काली छाया न आने दें, शेष संचित कर्म जैसे होंगे, वैसा ही हम सबको मिलना है।
आज इस परेशानी से कई परिवार दो-चार हो रहे हैं, पति-पत्नी में सामंजस्य का अभाव भी परेशानी को जन्म दे देता है। पति को जहां अपने मां-बाप का परम आज्ञाकारी पुत्र साबित करने के लिए संघर्ष करके पत्नी को भावना को तिरस्कृत करना पड़ता है, वहीं पत्नी को सास-ससुर व पति के साथ तालमेल आपसी बिठाने व विश्वास के लिए बहुत चिंतन करना पड़ता है, जिससे परिवार की गाड़ी का पहिया कभी-कभी उतार-चढ़ाव में फंसे जाता है। वृद्ध व अस्वस्थ माता-पिता व सास-ससुर की सेवा करना बहुत बड़ा धर्म है, वरिष्ठजन की सेवा पूजा-जप-तप है। लेकिन इसके सब तरफ से अनुकूल व्यवहार होना भी आवश्यक है। शास्त्रों में यह भी उल्लेख मिलता है कि- “अन्याय करने पर अपने-अपनों का प्रभावी रूप से विरोध करना भी धर्म है।” और आगे यह भी कहा गया है कि- जो अन्याय होता देखकर भी उनका अपनी सामर्थ्यीनुसार प्रतिकार नहीं करता है, वह भी उतना ही दोषी हैं, जितना कि अन्याय करने वाला। यहां यह देखना-समझना आवश्यक है कि जिसे तुम अन्याय मान रहे हो, क्या सच्च में वह अन्याय की श्रेणी में आता है, या केवल आपके (अन्याय कहने वाले के) लाभ-हानि के आधार पर वह अन्याय है।
अधिकांश घर/परिवारों में यह भी देखने-सुनने को मिलता है कि बहु के पक्ष (मायके) से उसकी मां, भाई-बहनों आदि द्वारा बात-बात पर जायज-नाजायज सलाह देने का प्रयास किया जाता रहता है, या लड़के के द्वारा अपने मातृ-पितृपक्षीय सदस्यों की सलाह/सहयोग के बजाय ससुराल पक्षीय लोगों के प्रति अधिक आकर्षण बना रहता है और कुछेक घर/परिवारों में उनकी बहिनों का हस्तक्षेप अधिकतर प्रभावी रहता है। भले ही हर रिश्ते के सम्मान होना परम आवश्यक है, परंतु इस कदम-कदम लड़के का अपने घर के लोगों का और लड़की अपने ससुराल पक्ष का तिरस्कार कर बाहरी रिश्तों से ज्यादा झुकाव होता है, तो यह स्थिति संबंधित परिवार की एकता के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन जाती है। इस प्रकार के संबंधों से सीमाओं का अवश्य रखा जाना चाहिए, अन्यथा घर/परिवार की शांति को नुकसान होना लाजिमी है। मां-बाप को इस बात से बचना आवश्यक है कि जरूरत से ज्यादा बेटी को उसके ससुराली रिश्तों के संबंध में अनावश्यक सलाह न दी जाय। यह बेटी तथा उसके ससुराली परिवार की शांति व एकता के लिए ज़रूरी है। इस प्रकार गैर-जरूरी रूप से बेटी के ससुराली परिवार में उसकी मां के द्वारा बार-बार हस्तक्षेप/अनावश्यक सलाह तथा बेटी द्वारा मायके पक्ष से बात-बात पर अनावश्यक सलाह/हस्तक्षेप से प्रभावित परिवारों में अधिकांश यह देखने को मिलता है कि वहां सास-बहू में वैचारिक संघर्ष बना रहता है, जिससे परिवार की एकता व शांति विखण्डित होने की पूरी पूरी संभावना बनी रहती है।
परिवार/कुटुम्ब के प्रति अविश्वास व द्वेषभाव के बीजों का बीजारोपण कर अच्छे-अच्छे परिवार व बच्चों को अव्यवहारिक बनाने वाले कभी सुखी-संपन्न रह ही नहीं सकते हैं, क्योंंकि ये किसी को क्षति तो पहुंचा नहीं सकते पर स्वयं व अपने बच्चों का जीवन कष्टमय अवश्य बना देते हैं। कृपया स्वयं व अपने परिवार को इस प्रकार की समस्या से ग्रसित होने से बचाकर सुखी-संपन्न जीवन व्यतीत करके इस अमूल्य मानव जन्म का भरपूर आनंद लें और प्रभु कृपा प्रसाद का लाभ उठायें, इसी आशा एवं विश्वास के साथ…
— शम्भु प्रसाद भट्ट ‘स्नेहिल’

शम्भु प्रसाद भट्ट 'स्नेहिल’

माता/पिता का नामः- स्व. श्रीमति सुभागा देवी/स्व. श्री केशवानन्द भट्ट जन्मतिथि/स्थानः-21 प्र0 आषाढ़, विक्रमीसंवत् 2018, ग्राम/पोस्ट-भट्टवाड़ी, (अगस्त्यमुनी), रूद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड शिक्षाः-कला एवं विधि स्नातक, प्रशिक्षु कर्मकाण्ड ज्योतिषी रचनाऐंः-क. प्रकाशितःः- 01-भावना सिन्धु, 02-श्रीकार्तिकेय दर्शन 03-सोनाली बनाम सोने का गहना, ख. प्रकाशनार्थः- 01-स्वर्ण-सौन्दर्य, 02-गढ़वाल के पावन तीर्थ-पंचकेदार, आदि-आदि। ग. .विभिन्न क्षेत्रीय, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की पत्र/पत्रिकाओं, पुस्तकों में लेख/रचनाऐं सतत प्रकाशित। सम्मानः-सरकारी/गैरसरकारी संस्थाओं द्वारा क्षेत्रीय, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के तीन दर्जन भर से भी अधिक सम्मानोपाधियों/अलंकरणों से अलंकृत। सम्प्रतिः-राजकीय सेवा/विभिन्न विभागीय संवर्गीय संघों तथा सामाजिक संगठनों व समितियों में अहम् भूमिका पत्र व्यवहार का पताः-स्नेहिल साहित्य सदन, निकटः आंचल दुग्ध डैरी-उफल्डा, श्रीनगर, (जिला- पौड़ी), उत्तराखण्ड, डाक पिन कोड- 246401 मो.नं. 09760370593 ईमेल [email protected]