कविता

आज हमने देखा

अखिल विश्व को मौत बांट कर खुश है दुष्ट वुहान,
आज हमने देखा।
मानवता की चिता जलाते मिले कई शैतान,
आज हमने देखा।
घोर आपदा में सांसे भी चुरा रहे हैवान,
आज हमने देखा।
युद्ध कर रहे दानवता से धरती के भगवान,
आज हमने देखा।
राजनीति में गिद्धों का लाशों पर बगुला ध्यान,
आज हमने देखा।
कुटिल चाल शकुनी जैसी दुर्योधन सा अभिमान,
आज हमने देखा।
जयचंद,मीरज़ाफर वंशज निष्ठा पर देते ज्ञान,
आज हमने देखा।
सनविस्टा के अधिनायक को विस्टा का है भान,
आज हमने देखा।
आशाओं के अम्बर में चमकी लाली दिनमान,
आज हमने देखा।
मृतशैया की देहरी पर उपहारित जीवनदान,
आज हमने देखा।
संवेदना,प्रयासों और मनोबल से हो रहा निदान,
आज हमने देखा।
स्वास्थ्य लाभ पाने वालों का ग्राफ तीव्र गतिमान,
आज हमने देखा।
बांटते दवाई और उपकरण,राहत का सामान,
आज हमने देखा।
दे रहे दुआएं पीड़ित,परिजन को करते गुणगान,
आज हमने देखा।
चीरहरण की नीयत पर पीताम्बर का परिधान,
आज हमने देखा।
टूटते मनोबल पर कहना “मैं हूँ ना” भाईजान,
आज हमने देखा।
— पंकज त्रिपाठी कौंतेय

पंकज त्रिपाठी कौंतेय

हरदोई-उत्तर प्रदेश