कविता

अपने बनकर देते, धोखे

अपने बनकर देते, धोखे
मिल  जाते हैं, उनको मौके

समय मिला, कुछ करना है।
मिलकर,  आगे बढ़ना   है।
शिखरों पर  चढ़कर के ही,
घाटियों में  हमें उतरना है।

प्रेम नहीं, आतंकित  करता।
बूँद-बूँद से, घड़ा है भरता।
गति के साथ, अविरल चल,
जन, जीवन यात्रा पूरी करता।

चिकने पथ भी, बहुत मिलेंगे।
चलेंगे उन पर, वह फिसलेंगे।
ऊबड़-खाबड़ पथ है अपना,
ठोकर खाकर भी  पहुँचेंगे।

पढ़े बहुत, पर नहीं हैं सीखा।
नेत्र भले ही, पथ नहीं दीखा।
समय बीत गया, पहुँच न पाए,
करते रहे,  औरों पर  टीका।

अवसर गया,  न फिर आएगा।
जो बोएगा,  वह ही खाएगा।
पल-पल समय का उपयोग कर,
वरना  बाद में  पछताएगा।

सुःख- दुःख आते जाते रहते।
जीवन में सब ही कुछ सहते
रूक  जाना है, मृत्यु निशानी,
जीवित हैं, जो हैं, नित बहते।

अपने  बनकर  देते,  धोखे।
मिल  जाते हैं, उनको मौके।
विश्वासघात से घायल कर,
खुद ही लगाते, छक्के-चैके।

सब कुछ सहकर बढ़ना है।
कष्टों से खुद को गढ़ना है।
थकान हुई, विश्राम कुछ करो,
शिखरों पर तुम्हें चढ़ना है।

किसी वस्तु की चाह नहीं है।
अपनी भी  परवाह  नहीं है।
पढ़ना-लिखना भी  निरर्थक है,
बनाता यदि  इंसान नही है।

नेता और अधिकारी  बनते।
नौकरी के नित, ख्वाब हैं पलते।
आई ए एस, सी ए मिल जाते,
प्रबंधक मिलें, इंसान  न मिलते।

सब  अपना-अपना  राग अलापें।
मुश्किल पड़े,  ऐसी  में  काँपे।
निज  कर्तव्यों को समय न मिलता,
व्यर्थ शिकायतों से नहीं धाँपे।

मुफ्त का सबको, माल चाहिए।
कर्तव्य  नहीं, अधिकार चाहिए।
काम नहीं, नित माल मिले बस,
ऐसा सबको  रोजगार चाहिए।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)