संघर्ष में आदमी अकेला होता है, परंतु जब उन्हें सफलता मिलती है, तो पूरी दुनिया उनके साथ हो जाती है !
अगर आप में सेवा की भावना नहीं है, अगर आप दूसरे के प्रति मनभेद पालते हैं, तो यह कैसी आस्तिकता है ? भीतरघाती व्यक्तियों से बचकर ही रहना चाहिए, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष ! अगर मतभेद है तो ‘बेबाक़ीपन’ होंगे ही ! आप अपने हर कृत्य के लिए शाबासी नहीं पा सकते ! लोग हर समय आपकी प्रशंसा नहीं कर सकते! मैं दकियानूसी कृत्य को नहीं अपना सकता ! तभी तो मुझे ‘छद्म आस्तिकता’ पसंद नहीं है।
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स्त्रीदेह पुरुषों की कमजोरी है, तभी तो चालाक स्त्री ऐसे निरीह पुरुष को फाँसकर मनमाना कार्य निकालती हैं ! हमने इस पोस्ट में उन्हें चरित्रहीनता से कहाँ जोड़ा है, भाई ? हाँ, इसके उलट भी है, क्योंकि पुरुष जबतक चरित्रहीन नहीं होंगे, तब तक स्त्री बेवफा नहीं हो सकती ! अभी जो तथ्यात्मक है, वही लिखा है ! एक सुंदर युवती किसी कुरूप अथवा काला युवक से शादी तो दूर उसे ‘आई लव यू’ तक क्यों नहीं कहती है ?
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तो धर्मविहीन समाज के निर्माण में सादर सहयोग करें ! आप कैसे कवि हैं भाई ! ‘मुक्तिबोध’ को नहीं समझ पा रहे हैं ? हमें लगता है, आप ‘पर….भाष’ बुद्धिजीवी भी नहीं हैं ! क्यों ? यह कहकर आप ‘अहं’ का परिचय दिया हैं ! आपने क्या किया है अबतक ? जो उद्धरण बनाऊं ! फ़ख़्त, नील बटा सन्नाटा ! क्या-क्या लिखते हो जी ! प्रवचन तो आप झाड़ते हैं ! कभी आप, तो कभी तुम ! आपका दर्शन आपको सलामत ! बचकाना या बच काना ! जैसा कि आपने अभी-अभी सिखाए, जी ! आप समीज पहन लो ! मुँह कब से मियाँ हो गया जी, जो सुगर पेशेंट हो गया ! जय हो, भय हो, क्षय हो…. आज दिन भी मंगल है जी और हम दोनों कुतर्कों के दंगल में हैं जी ! हा-हा-हा ! बाल की खाल नहीं, पाल की खाल …. जो ब्लैक है…. हा-हा-हा….
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‘सर्वोदय समाज, कटिहार’ के आदरणीय अध्यक्ष और सदस्यों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए दिल्ली में गिरफ्तारी दी…. शाबाश, सर्वोदय समाज ! अब तो आंदोलन से इतर माइंड गेम खेलने होंगे, क्योंकि दिल्ली तो हिंदी पट्टी है ही ! अगर हम चेन्नई, तिरुवनंतपुरम, कोलकाता के माइंड को बदलें, तो बात बने…. वाकई में “संघर्ष में आदमी अकेला होता है, परंतु जब उन्हें सफलता मिलती है, तो पूरी दुनिया उनके साथ हो जाती है !”