संस्मरण : मोबाइल चलाना सीख ही गया
वर्तमान में मेरी उम्र 52 साल है। गत वर्ष फरवरी’20 में बेटी की जबरन कोशिशों से मैंने पहली बार एंड्रॉयड मोबाइल चलाया और फिर धीरे धीरे काफी कुछ सीख गया।
आश्चर्य की बात तो यह है कि मैं सिर्फ इस डर से एंड्रॉयड मोबाइल से भागता रहा कि मैं इसका प्रयोग नहीं कर ही पाऊंगा। एंड्रॉयड फोन चलाना मेरे बस का रोग नहीं है।मुझे हमेशा यही लगा कि एंड्रॉयड फोन चलाना बहुत कठिन है।
खैर! बेटी के दिशा निर्देश, संरक्षण,मार्ग दर्शन से आज मैं इतना कुछ जान गया हूँ कि साहित्य में अपनी अलग पहचान बन गई, अपनी सभी साहित्यिक गतिविधियों के अलावा लाइव, जूम एप, गूगल मीट, स्ट्रीम यार्ड का प्रयोग आसानी से कर लेता हूँ।
आज जब बीते दिन याद आते हैं तो सोचता हूँ यदि यही हिम्मत मैंनें पहले दिखाई होती तो शायद स्थिति कुछ और होती। खैर..।ये भी सोचने को विवश हो ही जाता हूँ कि यदि बेटी ने विवश नहीं किया होता तो इस तकनीकी समय में मैं गुमनामी की जिंदगी ढो रहा होता और साहित्य जगत से दूर ही रह जाता।
आज मैं साहित्य संगम संस्थान असम इकाई का अधीक्षक हूँ। अन्यान्य साहित्यिक गतिविधियों में संलग्न होकर अपनी यथासंभव साहित्य सेवा कर रहा हूँ।राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय मान सम्मान पहचान पा रहा हूँ/लोगों से जुड़ पा रहा हूँ। राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में मेरी रचनाएँ छप रही हैं।संस्थान के 200 से अधिक सम्मान पत्रों सहित 550 से अधिक सम्मान पत्र मिल चुके हैं।कुछ अंतरराष्ट्रीय पटलों से भी सम्मान पत्र मिल चुके हैं। अनेकों साहित्यिक पटलों पर परोक्ष/अपरोक्ष सहयोग भी दे रहा हूँ। इसी की बदौलत पचासों नवोदितों को मार्गदर्शन देकर उनकी प्रतिभा को प्रकाशित करने में भी सफल रहा।
आज साहित्य जगत में मुझे जो कुछ भी मिला या मिल रहा है,इसमें मेरी बेटी की महती भूमिका है और उसको ही पूरा का पूरा श्रेय जाता है।
‘सीखने की कोई उम्र नहीं होती’ यह बात पूरी तरह मुझ पर स्वमेव चरितार्थ हो रही है।