सामाजिक

फ़िज़ूल खर्च को पहचानो, कंपनीयों के दावों को पहचानो

क्यूँ आज सबकी जेब पर बोझ पड़ रहा है ? क्यूँ महंगाई और सरकार को कोसते है सब। कभी ये क्यूँ नहीं सोचते की बिनजरूरी चीज़ों पर व्यर्थ खर्च कर रहे है हम। आज से कुछ साल पहले के रहन सहन में और आज के रहन सहन पर एक नज़र डालेंगे तो पता चल जाएगा कि कुछ चीजों पर कितना फ़िज़ूल खर्च कर रहे है हम। खुद को नये ज़माने के जताने के चक्कर में नयी नयी प्रोडक्ट से घर भर देते है। जीवन जीने के चोंचले बढ़ गए है।
महंगे साबुन, टूथपेस्ट बालों का तेल, दूध में मिलाने वाले प्रोटीन पाउडर, फ़र्श क्लीनर और ब्यूटी प्रोडक्ट से लेकर बच्चों के उपयोग में लाई जाने वाली कोई भी अन्य प्रोडक्ट हो, आज बाजारों में भरमार लगी है प्रोडक्ट्स की। पहले के ज़माने में इनमें से आधी चीज़ें भी नहीं होती थी फिर भी चल जाता था, और लोगों की सेहत भी अच्छी रहती थी। आज हमारे जीवन में रोज़मर्रा की जरूरतों के लिए तरह तरह की चीज़ें बन रही है। पहले के जमाने में दातून से काम चल जाता था आज हर्बल से लेकर कितने प्रकार की टूथपेस्ट उपलब्ध है। और कंपनी के बड़े-बड़े दावे की हमारी टूथपेस्ट में लौंग है, नमक है, ये है, वो है। साबुन में केसर, मलाई और चंदन के दावे सिर्फ़ और सिर्फ़ हमें आकर्षित करने के तरीके मात्र है। हैंडवोश वाले तो 99.9 % कोरोना वायरस को मारने के दावे करते है। बाथरूम क्लीनर और फ़र्श क्लीनर में भी अलग-अलग प्रोडक्ट। हाथ पौंछने के लिए वाइप्स, मुँह पोंछने के लिए अलग वाइप्स। डेटोल में भी तरह-तरह की फ़लेवर, सब्जी साफ़ करने के कैमिकल अलग से। वोशिंग पाउडरों के दावे तो हद ही करते है, ओईल और करी के दाग चुटकी में गायब। असल में गायब होते ही नहीं। पहले एक निरमा वोशिंग पाउडर सब जगह चल जाता था कपड़े धो लो, बर्तन साफ़ कर लो या वोशबेज़िन की सफ़ाई सबमें चलता था। शैम्पू की तो बात ही निराली, लंबे घने बालों को दर्शाते कितने काल्पनिक दावे करते है, उसमें भी अलग अलग प्रोडक्ट, किसीमे एलोवेरा तो किसीमे शहद, किसीमे नींबू तो किसीमे रीठा के गुण। और नमक को ही लीजिए उसमे भी कितनी वरायटी सादा और आयोडीन वाला। और रिफ़ाइन्ड ऑयल के तो क्या कहने हृदय को सलामत रखने वाले तेलों में भी सौ ब्रांड और पचास दावे। कहाँ होते थे वाॅटर प्योरिफ़ायर मटके का पानी भी प्यास बुझाता था फिर भी किडनी स्टोन की शिकायतें कम होती थी। कितना कुछ गिनवाए, नहीं लगता कि ये सारी चीजें बिनजरूरी और घर का बजेट हिला देने वाली है और कंपनी की तरफ़ से किए गए दावों में कितनी प्रतिशत सच्चाई होती है ? सब जानते है अपनी प्रोडक्ट बेचने के लिए जनता को बेवकूफ़ बनाकर शीशे में उतारने की साज़िशों होती है। हर चीज़ में मिलावट और हार्मफ़ूल कैमिकलों की भरमार होती है। क्यूँकि जब से इन सारी मिलावट वाली चीज़ों का हम उपयोग कर रहे है तब से स्वास्थ्य पर बुरी असर हो रही है। आज कैंसर जैसी खास बिमारी आम हो गई है। कभी आराम से सोचोगे तो पता चलेगा कि ये जो मोल में रखी आकर्षक पैकिंग में लिपटी हर चीज लोगों को आकर्षित करती है ये मार्केट की चकाचौंध जेब पर बहुत भारी पड़ती है। हर महीने जब शोपिंग करके चीज़ें लाएं उसमें से फ़िजूल चीजें हटाएंगे तो पता चलेगा की कम से कम एक हज़ार रुपये बर्बाद किए होंगे। तो महंगाई और सरकार को कोसने के बदले कुछ चीज़ों से परे रहेंगे तो जेब भारी रहेगी।
— भावना ठाकर

*भावना ठाकर

बेंगलोर