कविता

मजदूर

सीने में जख्म लिए
चेहरे पर मुस्कान,
माथे पर पसीना
करता नवनिर्माण ।
अपनों से दूर
सपनों में खोकर
गीत नया गाता
भरपेट नहीं खा पाता ।
टूटता-बिखरता
पर भय नहीं खाता
वह सीधा-साधा
जग मजदूर उसे कहता ।
वो आज भी रंक बना
कितने राजा पैदा हुए
पर उसने अपमान ही सहे
दर्द अपना किसी से न कहा…?
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111