कविता

हाथ-थाम, जब, दोनों चलते

सीधा-सच्चा पथ है मेरा।
नहीं करता, मैं मेरा तेरा।
ना कोई अपना, ना है पराया,
सबका अपना-अपना घेरा।

नर-नारी का इक है डेरा।
मिलते जहाँ, वहाँ बने बसेरा।
नारी नर बिन, नहीं रह सकती,
नर, नारी का ही, है चेरा।

जीवन पथ पर पथिक हैं मिलते।
संबन्धों के, पुष्प हैं खिलते।
सह-अस्तित्व है, प्रकृति सिखाती,
संबन्धों को, प्रेम से सिलते।

आओ हम मिल, जग को सजायें।
जहाँ, मुस्काती हों, सभी फिजायें।
नर-नारी  में मैत्री  भाव हो,
ना, अपराध हो, ना हों  सजायें।

आओ देखें, हम, इक सपना।
कोई न पराया, हर है अपना।
मानवता के भाव हर उर में,
नहीं किसी को, पड़ेगा तपना।

भिन्न-भिन्न ना, नर और नारी।
वो है प्यारा,  वो है प्यारी।
इक-दूजे के हित हम जीते,
नारी नहीं है, नर से न्यारी।

नहीं किसी की, कोई बारी।
इक-दूजे की संपत्ति सारी।
हाथ-थाम, जब, दोनों चलते,
कोई पथ ना, इनको भारी।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)