मोदीफाइड के सात साल !
कि ‘स्वच्छता’ अभियान में तन की स्वच्छता, घर की स्वच्छता और बाहर की स्वच्छता पर तो ध्यान दिया गया, परंतु ‘दिल’ की स्वच्छता पर ध्यान नहीं दिया गया । दिल को किस झाड़ू से साफ करूँ, अबतक बताया नहीं गया ? ….क्योंकि अपुन के दिल को समझा लेता हूँ, किन्तु प्रेमिका के दिल को कैसे समझाऊं, जो मई 1996 से नहीं समझ रही है !
कि बेनामी संपत्ति वाले अब भी वैसे ही मुखर हैं, जैसे- आजादी मिलते ही सबसे ज्यादा जमींदार वर्ग आक्रामक हो गए थे! मैं सहित मेरे चार पुख्त (जहां तक मैं जानता हूँ) अबतक ‘पलंग’ पर नहीं सोया है और लोग इससे परेशान हैं।
कि बिजली की स्थिति क्या सुधरी पता नहीं? हाँ, नए पोल गड़े हैं, जिनपर अत्याधुनिक तार लटके हैं । मई के इस अंतिम सप्ताह देखिए– प्रत्येक दिन बिजली 11 बजे दिन में भागती है और रात 2 बजे आती है । शाम में 2-3 घंटे के लिए वैसी ही रहती है, जैसे- ‘लालटेन’ भी शरमा जाय ! वैसे बिजली रहकर भी क्या, मेरे पास न तो एयर कूलर है, न फ्रीज़, न रेफ्रीजरेटर, न ही इन्वर्टर तक।
कि पानी की शुद्धता चापाकल से तय नहीं होती, ₹30 प्रति गैलन खरीद कर तय की जाती है । इसलिए भी खरीदना जरूरी हो गया है, क्या पता ‘आर्सेनिक’ युक्त पानी से सुबह-सुबह गाँड़ ‘लाल’ न हो जाय ! वहीं तो बिहार में हर घर नल-जल योजना फ्लॉप जैसी लग रही है !
कि सात साल पहले ही यह हिम्मत आई कि ट्रेन पर दौड़ लगाकर चाय बेचनेवाला एक बैकवर्ड प्रधानमंत्री भी बन सकता है, मैंने भी जोड़ लगाया, किन्तु एक बड़े ‘परीक्षा आयोग’ ने धोखा दिया, तो सोचा कमल के साथ-साथ उनके पर्याय ‘पद्म’ भी तो हो जाऊं, किन्तु वहां भी चीटिंग हुआ । निम्न वर्गीय बैकवर्ड ही रह गया, अपने बैकवर्डी रिश्ते ने ही इस कदर क्रश किया कि ढंग के नीड़ का निर्माण नहीं कर सका आजतक !
कि प्रेरणा से अंदर तक हिल जाता हूँ कि इस 47वें वर्ष में प्रवेश कर भी शादी की इच्छा ही नहीं बन रही है, वैसे ‘रत्नावली’ के तिरस्कार से ‘मानस’ लिखने का मन में विचार आया, लिखा भी, एक बड़े पदाधिकारी-मित्र को दिया भी, किन्तु 2 वर्ष हो गए, पुस्तक अबतक छप नहीं सकी है ! यह हॉरर है बानी !
कि दो जोड़े पेंट-शर्ट को भारतरत्न श्रीमान वाजपेयी जी के हार से ही चला रहा हूँ, आज ही पिता जी ने एक जोड़ा पेंट-शर्ट दिए हैं, जो कि उनके श्रमसाध्य टेलरिंग का करिश्मा लिए है।
कि अब भी मुझे जो भोजन प्राप्त होता है, उनके प्रति संतुष्ट नहीं हो पाता हूँ, क्योंकि अपने देह को स्थापना काल से ही मैंने 2400 कैलोरी ऊर्जा नहीं प्राप्त करा सका हूँ ।
कि गरीब व्यक्ति के लिए प्रत्येक दिन ‘योग’ व्रत लिए होता है, किन्तु उनकी दिनचर्या ‘मन की बात’ को लेकर औत्सुक्य तो है, किन्तु उनके ‘मन’ में ‘ओलंपियन’ और ‘आईएएस’ बनने का ख्वाब तक नहीं आ पाता है । बिहारी बीपीएल ऐसा सोच भी नहीं सकता है । जब पहला कॉमनवेल्थ गोल्ड मेडलिस्ट बिहारी की बात आई, तो उस रूप में, जो एक राजा और पूर्व केंद्रीय मंत्री की बेटी है !
कि विकास पर जाति अब भी हावी है, बिहार में कभी यादव, तो कभी कुर्मी…. एक मुशहर बना, तो गर्भकाल (9 माह) लिए ! करोड़ों की आबादी के बावजूद कोई अल्पसंख्यक कैसे हो सकता है ? कर्नाटक का नाटक ‘लिंगायत’ के प्रति था या विकास के ! भारत में— ‘जाति, जो नहीं जाती !’
कि बिहार में एक उप-राजा ने बेटे की शादी में सिर्फ मिठाई बाँटे, दूजे यानी आय से अधिक सम्पत्तिवाले पूर्व राजा-रानी ने अपने बेटे की शादी में अरबों फूंक डाले, उस बेटे की शादी में, जिन्होंने देश के प्रधान माननीय को कहा था- ‘…. शरीर से चमड़ा उधेड़ लेंगे !’
कि सड़क पर खामख़्वाह ! अच्छे सड़क बनते हैं, किन्तु बगलगीर लिए ‘धर्मकांटा’ बन जाता है, फिर जाम ही जाम ! जहां धर्म गायब है और शेष बचता है… ‘काँटा लगा !’ इतना ही नहीं, अपने होशकाल से सुन रहा हूँ, साहिबगंज-मनिहारी गंगा पुल बने, फिर गौशाला रेलवे गुमटी, कटिहार पर ओवरब्रिज बने, अबतक सटक सीताराम ही है ।
कि स्वास्थ्य को लेकर एम्स की बात करूँ, आईएमए की बात करूँ, डब्ल्यूएचओ की बात करूँ, डॉ. हर्षवर्द्धन की बात करूँ, स्वामी रामदेव की बात करूँ या डॉ. बिस्वरूप रॉय चौधरी की बात करूँ ! ….तो इधर मेरे प्रियजन वहां गए थे, एक तो नम्बर लगाने हेतु स्थानीय सांसद की गुहार लगानी पड़ी, तो वहीं डॉक्टरों ने इस कदर बीमारी के नाम पर असाध्यरूप में डराया कि वे भागकर घर लौट आए और यहां झोलाछाप से इलाजरत हैं !
कि घर की बेटी तो बच गई, किन्तु बेटी इतना पढ़ गई और उच्च शिक्षित हो गई, फिर मास्टरनी भी हो गई, किन्तु 35 साल बाद भी वे दुल्हिन नहीं बन पाई है । ऐसी एक नहीं, घर में दो-दो ! क्या मास्टरनी की इच्छा के विरुद्ध उनकी शादी असाक्षर और कम उम्रवाले से करा दूँ!
कि इन वर्षों में रामलला ‘अवध’ के हो नहीं पाया, उल्टे गोरखपुर को खोया । हाँ, बिहार से पुनः जुड़ाव हुआ और दारू पर विराम तथा दहेजवाली शादी का बहिष्कार का मानव जोड़ो अभियान माइल स्टोन साबित हुआ और इसे दिल्लीवाले ही नहीं, रेकॉर्डवालों को भी स्वीकारना पड़ा !
2020 तो ऐसे ही बर्बाद हो गइल, अब तअ 2021 भी ऐसे ही निकल जाएगी ! लागल कोरोना की लहर और कहर से सबनि के अस्त, व्यस्त और पस्त हो गइल, भयबा ! सब उपलब्धि मटियामेट अउर का, भउजी ! कोरोनाकाल में 20 साल पीछे हो गइल देश, अपन देस कि अब सब कोई हउ भदेस ! बहुत सारे कशमकश हैं, सामने दूसरी पारी के तीन साल और है, जो बहुत होती है । बधाई देकर आपका हौसलाअफजाई करना चाहता था, किन्तु लगा कि आप अतिउत्साहित न हो जाय, इसलिए मैं अपना मन बदला कि ‘लगा दो जान, मत चूको चौहान’ ! ….लेकिन अब तो सिचुएशन ऐसा है कि पहले इस बड़-बीमारी से देश को निकाले, फिर विकास को सोचेंगे !