प्रेम है तो दैहिक भोगना क्यों ?
अपनी पत्नी को
प्रेम नहीं बल्कि
‘वासना’ के नजरिये से
देखते हैं,
क्योंकि अगर आपमें
हिम्मत है,
तो उनकी देह को
भोगिये मत !
भोगना ही ‘वासना’ है,
प्रेम नहीं !
….और प्रेम की भी
अंतिम नियति
‘वासना’ है या नहीं !
क्योंकि चतुरंगी बिसात में
भौतिक फ़लसफ़ा
यही कहता है
कि पति का मतलब
पत्नी को भोगने के लिए
रजिस्ट्री पा लेना है क्या ?
….अगर भोग कर लिये है,
तो यह पागलपन है।
प्रेम का अंधरूप
पति के साथ जुड़ा है,
वरना सच्चा प्रेम
तो एकतरफा ही होता है !