विलक्षण बुद्धि और सरल व्यक्तित्व के स्वामी : दीन दयाल जी
पंडित दीनदयाल उपाध्याय अत्यंत सरल, सौम्य और भावापेक्षा लिए गम्भीर व्यक्ति थे। वर्त्तमान केंद्र सरकार की 75 फीसदी योजनाएँ पंडित जी के विचारों से ओत-प्रोत हैं। राजनीति के अतिरिक्त साहित्य में भी उनकी गहरी अभिरुचि थी। उनके हिंदी और अंग्रेजी के लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे। विकिपीडिया के अनुसार, सिर्फ एक बैठक में ही उन्होंने ‘चन्द्रगुप्त’ नाटक लिख डाला था। पं. दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर 1916 को राजस्थान के जयपुर के धानक्या ग्राम में ननिहाल में हुआ था । इनके पिता का नाम पं. भगवती प्रसाद उपाध्याय, जो नगला चंदभान (मथुरा) के निवासी थे। माता आदरणीया रामप्यारी देवी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। पिता ब्रिटिश भारतीय रेलवे में जलेसर रोड स्टेशन पर सहायक स्टेशन मास्टर थे । रेल की नौकरी होने के कारण उनके पिता का अधिक समय बाहर ही बीतता था। कभी-कभी छुट्टी मिलने पर ही घर आते थे। थोड़े समय बाद ही दीनदयाल के भाई ने जन्म लिया जिसका नाम शिवदयाल रखा गया। पिता भगवती प्रसाद ने बच्चों को ननिहाल भेज दिया। उस समय उनके नाना चुन्नीलाल शुक्ल धनकिया में स्टेशन मास्टर थे। मामा का परिवार बहुत बड़ा था। दीनदयाल अपने ममेरे भाइयों के साथ खेलते बड़े हुए।
तीन वर्ष की मासूम उम्र में दीनदयाल पिता के प्यार से वंचित हो गये। पति की मृत्यु से माँ को अपना जीवन अंधकारमय लगने लगा। वे अत्यधिक बीमार रहने लगीं। उन्हें क्षय रोग लग गया और अगस्त 1924 को उनकी माँ का देहावसान हो गया। सात वर्ष की कोमल अवस्था में दीनदयाल माता-पिता के प्यार से वंचित हो गये। उपाध्याय जी ने पिलानी, आगरा तथा प्रयाग में शिक्षा प्राप्त की । बी.एससी., बी.टी. करने के बाद भी उन्होंने नौकरी नहीं की। छात्र जीवन से ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता हो गये थे। अत: कालेज छोड़ने के तुरन्त बाद वे इस राष्ट्रीय संस्था के प्रचारक बन गये और एकनिष्ठ भाव से संघ का संगठन कार्य करने लगे।
सन 1951 में अखिल भारतीय जनसंघ का निर्माण होने पर वे उसके संगठन मन्त्री बनाये गये। दो वर्ष बाद सन् 1953 में उपाध्यायजी अखिल भारतीय जनसंघ के महामन्त्री निर्वाचित हुए और लगभग 15 वर्ष तक इस पद पर रहकर उन्होंने अपने दल की अमूल्य सेवा की। कालीकट अधिवेशन (दिसम्बर 1967) में वे अखिल भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए और 11 फरवरी 1968 की रात में रेलयात्रा के दौरान मुगलसराय के आसपास व रेल की पटरियों पर उनके संदेहास्पद स्थिति में शव मिले।
विलक्षण बुद्धि, सरल व्यक्तित्व एवं नेतृत्व के अनगिनत गुणों के स्वामी भारतीय राजनीतिक क्षितिज के इस प्रकाशमान सूर्य ने भारतवर्ष में समतामूलक राजनीतिक विचारधारा का प्रचार एवं प्रोत्साहन करते हुए सिर्फ 52 साल की उम्र में अपने प्राण राष्ट्र को समर्पित कर दिए। आकषर्क व्यक्तित्व के स्वामी दीनदयालजी उच्च-कोटि के दार्शनिक थे किसी प्रकार का भौतिक माया-मोह उन्हें छू तक नहीं सका। मैट्रिक और इण्टरमीडिएट-दोनों ही परीक्षाओं में गोल्ड मेडल । कानपुर विश्वविद्यालय से बी.ए.भी किया । सिविल सेवा परीक्षा में भी उतीर्ण हुए, लेकिन उसे त्याग दिया।
राष्ट्रधर्म , पाञ्चजन्य और स्वदेश जैसी पत्र-पत्रिकाएँ प्रारम्भ की।
केन्द्र सरकार ने मुगलसराय जंक्शन का नाम दीन दयान उपाध्याय स्टेशन कर दिया गया। इसी के साथ कान्दला बन्दरगाह के नाम को दीन दयाल उपाध्याय बन्दरगाह कर दिया गया।
‘अंत्योदय’ की अवधारणा के मूल में पंडित जी ही थे ।