खतों की यादें
अचानक एक दिन
पुराने खत दिखे तो
बीते दिनों की याद ताजा हो गई,
अलमारी में कैद
पुराने खतों की स्मृतियां
जेहन में आ गईं।
उन पत्रों में लिखे शब्द
जाने कितने अजीजों की
स्नेह, ममता, दुलार, डांट, फटकार
नसीहत, और अपनापन
स्मृतियों में घूम गई।
अब तो खतों का जमाना
लुप्तप्राय सा हो गया है,
आपसी भावनाओं का ज्वार
जैसे थम सा गया है।
अब किसी को का
इंतजार कहाँ होता?
मगर खतों सरीखा लगाव
सोशल मीडिया में नहीं होता।
अब तो अलमारी में कैद
खत यादगार बनें हैं
निशानी बनकर
अलमारी में कैद हैं,
अब तो सिर्फ़
महसूस किया जा सकता है
खतों का इंतजार
किया होगा जिसनें
वो ही समझ सकता है,
आँखों की भीगी कोरों के साथ
खतों में छिपे अहसास को
सच में समझ सकता है।