लड़की
पूनम की झिलमिल चांदनी सी लड़की,
सुबहों में बजती हुई रागिनी सी लड़की,
मिजाजों में जलेबी जैसा टेढ़ापन है पर,
मैंने देखी है एक मीठी चाशनी सी लड़की।
घास पर ज्यूँ सर्दी में शबनम मुस्काती है,
वो लड़की मेरी बातों पे वैसे ही शर्माती है,
ऊपर से है बन्द कोठरी, ताला चाबी जड़े हुए,
प्यार से खोलो तो वो किताब सी खुल जाती है,
मैं हरिद्वार के घाट सा, छोरों पर अलग अलग,
वो मुझे मिलाती पावन मन्दाकिनी सी लड़की।
लेकिन जाने क्यूं उसको इश्क़ से डर लगता है,
दिल पहले जो टूटा है उसका असर लगता है,
थाम कर थामकर ये यकीं दिलाना चाहता हूं,
साथ उसके मुक्कमल अपना शहर लगता है,
मेरी हर बात पर वो हंसकर यूँ इठलाने वाली,
शेक्सपियर की किसी प्रेम कहानी सी लड़की।
— हेमंत सिंह कुशवाह