मुक्त
ऐसा कोई नहीं
जो दुखों से मुक्त हो सके
मानव जीवन के पथ
दुखों के परिपेक्ष्य से गुजरती हैं।
सुख-दुख जीवन पथिक है
जो संग-संग चलते हैं।
सुख महज छलावा है
जो हरपल
छल कर जाती हैं..!
दुख यथार्थ है….
जो जीवन पर्यन्त साथ निभानी है!
इस क्षण भंगुर संसार में
सुख-दुख के रहस्यों को जो समझे
वही मानव इस –
जीवन से मुक्त हो जाता है।।
— विभा कुमारी “नीरजा”