मंत्री, संतरी और भी !
अंडर मैट्रिक मंत्री-सन्तरी बन रहे हों, तो यूनिवर्सिटी की क्या आवश्यकता है? इसे बंद कर देना चाहिए, सिर्फ विद्यालय ही रखे रहिये ! इसके बावजूद साहित्यकार को शिक्षा मंत्री ! एसटी को आदिवासी कल्याण मंत्री व महिला को नारी कल्याण मंत्री ! जो अल्पसंख्यक हैं, उसे अल्पसंख्यक मंत्री ! डॉक्टर को स्वास्थ्य मंत्री, राजपूत को रक्षा मंत्री…. सरकार में अभी यही हैं ! आश्चर्य है न !
क्या राजनीति वास्तव में व्यवसाय है, जिनके माँ-बाप, भाई-बहन, बहनोई, मामा-सामा सभी राजनीति में हो, वह भी मंत्री, एमपी, एमएलए के रूप में। देश धर्मनिरपेक्ष, जातिनिरपेक्ष और भाषानिरपेक्ष तभी हो सकता है, जब आज के परिप्रेक्ष्य में किशनगंज (बिहार) या श्रीनगर (ज.क.) से कोई हिन्दू लो.स. चुनाव जीते, वाराणसी (उ.प्र.) से कोई मुस्लिम जीते, मधेपुरा लो.स. (बिहार) या दानापुर वि. स. (बिहार) से कोई गैर-यादव जीते। वहीं श्रीमान रामविलास पासवान जी सामान्य सीट से जीत दिखाते !
चेन्नई से हिंदी भाषी उत्तर भारतीय जीते, तो लखनऊ से श्रीमान सुब्रह्मण्यम स्वामी जीतकर पार्लियामेंट जाए! एंग्लो इंडियन पटना से जीते, अररिया से कोई सिख बहन ! एक बिहारी भाई तिरुअनंतपुरम से जीते।
शशि थरूर कटिहार में आकर दम-खम दिखाए। वैसे कटिहार से कोई जीत सकता है, यहां प्राय: अतिथि सांसद ही रहे हैं ! लिंगायत वाले झारखण्ड आकर चुनाव लड़े, तो हमारे आदिवासी भाई पंजाब में जीते।
उत्तराखण्ड में बिहार से कोई मुशहर भाई जीते …..और तभी सच्ची जीत हो सकती है, अन्यथा चुनाव के समय ही ‘निरपेक्ष’ शब्द विलुप्त हो जाता है और जातिवाले – धरमवाले एकजुट हो जाते हैं । विकास – विकास खूब चिल्लाओ, ये संकीर्ण सोचवाले खुद से आगे कभी नहीं सोचेंगे!
बड़े भाई अररिया संसदीय क्षेत्र के लिए अन्य सभी वि.स. से हारे थे, सिर्फ उतने मत से जोकीहाट से ही जीते थे, जितने मत से छोटे भाई जोकीहाट वि. स. उप चुनाव जीता ! कोई आश्चर्य नहीं ! लगता है, एमवाई हावी है यहाँ !
भारतीय संविधान के मूल में राजनीतिक दलों का जिक्र नहीं है, एतदर्थ सभी संसदीय क्षेत्र अथवा विधान सभाई क्षेत्र में निर्दलीय प्रत्याशी ही खड़े होने चाहिए, फिर प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री का चयन इनमें से होना चाहिए। ….. क्योंकि पार्टी ही सभी फसाद की जड़ है!