कविता

मन की बातें

सन-सन हवा के राज़ ये, गूँजते वातावरण में।
समझा सकूँ मैं कैसे, उन्हें अपने चंचल मन में।
लहरों में लिपटी सीपें, आती हैं तट पे लगन में।
पर कुछ ही रह जाती हैं बाक़ी, चलती समुद्र तन में।
जामुन के पेड़ की डाल पे, दो चिड़ियों के मिलन में।
क्या चहकती हैं दोनों, शाम के प्रेममय पवन में।
जब अकेली हो जाती मैं, सोचती बैठ चमन में।
किस-किस तरह की बातें, आती हैं मेरे मन में।

— कलणि वि. पनागॉड

कलणि वि. पनागॉड

B.A. in Hindi (SP) (USJP-Sri Lanka), PG Dip. in Hindi (KHS-Agra) श्री लंका में जन्मे सिंहली मातृभाषा भाषी एक आधुनिक कवयित्री है, जिसे अपनी मातृभाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा से भी बहुत लगाव है। श्री लंका के श्री जयवर्धनपुर विश्वविद्यालय से हिंदी विशेषवेदी उपाधि प्राप्त की उसने केंद्रीय हिंदी संस्थान-आगरा से हिंदी स्नातकोत्तर डिप्लोमा भी पा ली है। वह श्री लंका में हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करने की कोशिश करती रहती है।