मन की बातें
सन-सन हवा के राज़ ये, गूँजते वातावरण में।
समझा सकूँ मैं कैसे, उन्हें अपने चंचल मन में।
लहरों में लिपटी सीपें, आती हैं तट पे लगन में।
पर कुछ ही रह जाती हैं बाक़ी, चलती समुद्र तन में।
जामुन के पेड़ की डाल पे, दो चिड़ियों के मिलन में।
क्या चहकती हैं दोनों, शाम के प्रेममय पवन में।
जब अकेली हो जाती मैं, सोचती बैठ चमन में।
किस-किस तरह की बातें, आती हैं मेरे मन में।
— कलणि वि. पनागॉड