(गीत) दूरी छ: फुट की रही मास्क हटाया न गया
हमसे आया न गया तुमसे बुलाया न गया
कोरोना बीच में था दूर भगाया न गया
हमसे आया न गया
एक साल हो गया जो तुमसे मुलाकात हुई
दिन ढल गया कब जाने कब रात हुई
फासला बीच का हमसे यूँ मिटाया न गया
हमसे आया न गया
पास आने से भी अब मुझे डर लगता है
गले में खराश हो कोरोना ही अब लगता है
दूरी छै फुट की रही मास्क हटाया न गया
हमसे आया न गया
मर गए अपने भी हम पास कभी जा न सके
अपने परिजनों को कांधा तक हम दे न सके
कोरोना जुल्म तेरा हमसे भुलाया न गया
हमसे आया न गया
सेनेटाइजर हम कई बार लगाते ही रहे
अपने आप को लगातार बचाते ही रहे
हाथ पीछे ही रहे तुमसे मिलाया न गया
हमसे आया न गया
भीड़ में फैला बहुत अकेले में यह फिर भाग गया
ढील बरती जो लोगों ने तो यह फिर जाग गया
ऐसा जागा कि कभी फिर यह सुलाया न गया
हमसे आया न गया
न देखा छोटा न बड़ा देखा इसने
न औरत देखी न पुरुष देखा इसने
सामने जो भी गया कुछ को बचाया न गया
हमसे आया न गया
— रवींद्र कुमार शर्मा