जीवन सार
पूर्णता और अपूर्णता के मध्य
इस जीवन के मंथन में
कभी पूर्णता के प्रति प्रयास में
तो कभी अपूर्णता के खिंचाव में
जीवन रुपी मंथन की निरंतरता में
कर्तव्यों और संघर्षो के द्वंद में
पीडा़ओं के विष पान में
तो कभी कभी आंतरिक
अनुभूति के आनंद में
हां अमृत की चाह में
मानव से देव बनने की प्रक्रिया में
मंथन को जीत लेने में
नव निर्माण के लिऐ
अनंत सागर से सत्य को जानने में
यहीं परम् लक्ष्य है
इस जीवन का संक्षिप्त में।
— दिव्या सक्सेना
हां अमृत की चाह में
मानव से देव बनने की प्रक्रिया में
मंथन को जीत लेने में
नव निर्माण के लिऐ
अनंत सागर से सत्य को जानने में
यहीं परम् लक्ष्य है
इस जीवन का संक्षिप्त में।
— दिव्या सक्सेना