कविता

वायरस फंगस बैक्टिरिया

कोरोना वायरस के नये नये,
रिश्तेदारों से मिलो।
पहले ब्लैक,फिर वाइट,
अब ये फंगस यैलो।
वायरस फंगस बैक्टिरिया,
पढे थे कभी किताब मे।
किताब से निकल ये घुसे,
जिन्दगी के हर लिहाफ मे।
इक तो कोरोना का कहर,
उस पर उसकी ये लहर।
अब फंगस की कतार,
उसका अखियों पे प्रहार।
नाक  तक पहले ही,
ओढ़ रखा था नकाब।
अब अखियों को भी,
पर्दानशीं करो जनाब।
यरस, फंगस, बैक्टीरिया,
हमारे चूषण बन गये।
मास्क, सेनिटाइजर, गलब्स,
हमारे आभूषण बन गये।

— चारु मित्तल

चारु मितल

कवयित्री व गजलगो, स्वतंत्र लेखिका व स्तम्भकार, जनपद-मथुरा,उत्तर-प्रदेश 9839650477