कविता

समय नहीं है, अब बचपन का

अधर मंद, मुस्कान विराजे।
वक्षों पर काले, केश हैं साजे।
नयनों में है, प्यास प्रेम की,
कामना नयन, पलक हैं लाजे।

चाहत तुमरी, कह ना, पाऊँ।
पास में तुमरे,  कैसे  आऊँ?
वियोग व्यथा से, पीड़ित उर,
चेहरा तुम्हारा, देख न पाऊँ।

आओगी, यह वादा किया था।
दूर से पास के, क्षण को जिया था।
हम अब भी, यादों में जीते,
देख चित्र, जो तुमने दिया था।

वायदा अपना, भूल गयी हो।
हमारे लिए, नित ही नयी हो।
मैं तो खड़ा, प्रेम के पथ में,
प्रेम के पथ को, भूल गयी हो।

दुनियादारी में  खोई हो।
पाल रहीं, जिसको बोई हो।
हम यादों में, करवट बदलें,
चैन की नींद, प्यारी सोई हो।

जहाँ था, छोड़ा, वहीं खड़े हैं।
जीवन जीना,  भूल, अड़े हैं।
ठोकर मार, चली गईं तुम,
करते प्रतीक्षा, वहीं पड़े हैं।

वायदा किया था, वायदा निभाओ।
एक बार आ,  गले मिल जाओ।
बीस वर्ष का, प्रेम हुआ बालिग,
प्रेम को तज, ना, कायदा निभाओ।

समय नहीं है, अब बचपन का।
समय आ रहा, अब पचपन का।
तुम्हारी चाहत में हैं टूटे,
काम करें, हम फिर बचपन का।

कुछ ही पलों को, भले ही आओ।
प्रेम-सुधा का, इक, घूँट पिलाओ।
दुनियादारी भूलो,  कुछ पल,
कस के, हमको, गले लगाओ।

साथ भले ही, ना रह पायें।
इक-दूजे को, ना बिसरायें।
यादें मधुर हैं, फिर जी लेंगे,
मधुर पलों में, युग जी जायें।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)