56 इंची प्रतिबद्धता
56 इंच के सीनेवाले को दुनिया की कोई नकारात्मकता, घृणा, ईर्ष्या या विभाजनकारी ताकतें क्षति नहीं पहुंचा सकते हैं, उनके पास ‘योग’ की शक्ति है और माँ का आशीर्वाद भी साथ है, जो शतायुजीवी होने को है । अपना मोदीजी भी शतायु जीवन पाएं, ऐसी शुभकामना है !
आर्थिक विपन्नता, मध्याह्न भोजन नहीं मिलने, विद्यालय में इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं होने व कंप्यूटर अथवा पुस्तकें इत्यादि नहीं होने मात्र से ही छात्र विद्यालय नहीं आते हैं, अपितु मैं लगभग 12 वर्षों से जो देख रहा हूँ, इसके अंतर्गत प्राय: छात्रों में पढ़ाई के प्रति ईमानदारिता बढ़ी है, उनके अभिभावकजन भी अपनी संतानों की पढ़ाई के प्रति समर्पित दिख रहे हैं।
विद्यालय में आरक्षित वर्ग के छात्र भी अब कतई कमजोर नहीं है। उच्च विद्यालय में 30 अनुपात 1 लिए छात्र और शिक्षक के अनुपातीय समीकरण नहीं रहने व सभी विषयों के शिक्षक नहीं रहने से शिक्षक-संसाधन सहित शिक्षादान नहीं, अपितु श्रमिकतुल्य कार्य बढ़ जाते हैं, जिससे पढ़ाई की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है, किंतु इसे अप्रभावित किए रहता हूँ।
वहीं प्रिंटेड पुस्तकें नहीं रहने से छात्रों के बीच पुस्तकों के जिरॉक्स प्रतियाँ व कागजों पर लिपिबद्ध करने-कराने के लिए ‘कैटेलिस्ट’ के कार्य में भी मैं संलग्न हूँ । ध्यातव्य है, मैं ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा में हिंदी पढ़ाता हूँ, किंतु इसे स्थानीय भाषा-परम्परा के तहत पढ़ाता हूँ, जिनमें ‘सामान्य ज्ञान’ की जानकारियाँ भी यथाबद्ध रहती है।
कुछ नॉन-सिलेबस कथाएँ छात्र को सुनाता हूँ, जैसे- ‘लाल रेखा’, ‘चंद्रगुप्त’, ‘मैला आँचल’, ‘गोदान’, ‘चंद्रकांता’, ‘हैरी पॉटर’ इत्यादि । जिनसे छात्रों में हिंदी, भाषा और साहित्य के प्रति रुचि बढ़ती जा रही हैं।