बोल्डनेस
क्या कोई बात सकते हैं कि बोल्डनेस और अश्लीलता में फर्क है या मजबूरी? हाल ही में रिलीज़ हिंदी फिल्म “वीरे दी वेडिंग” ने एक बार फिर बोल्डनेस और अश्लीलता के बीच बहस छेड़ दी। यह फ़िल्म स्त्रीचेतना को लेकर बोल्डनेस है, किन्तु दकियानूसी दर्शक इसे ‘अश्लील’ करार दे रहे हैं।
जिस फ़िल्म में चार ग्लैमरस अभिनेत्रियाँ हो, तो ऐसा कहा जाना स्वाभाविक है, किन्तु हम मर्द कभी भी स्त्री अंगों से बाहर नहीं निकल पाए हैं । सुश्री सोनाली मिश्र ने अपने आलेख में उच्च दर्शन प्रकट की है। कहा जा रहा है कि इस फिल्म में बोल्डनेस की हदें पार की गयी हैं, मगर कई बार आप ठहर कर सोचना ही नहीं चाहते कि बोल्डनेस क्या है? बोल्डनेस क्या छोटे छोटे कपड़ों में हैं?
तो फिर छोटे छोटे कपड़े पहनकर करवाचौथ व्रत भी प्रगतिशीलता का प्रतीक होगा? …और पेट उघाड़न साड़ी पहने हुई वैज्ञानिक पिछड़ेपन की? दरअसल हम बोल्ड और अश्लील की अपनी अवधारणा का विकास ही नहीं कर पाए हैं? हम इतने भ्रमित हैं, छोटे कपडे पहनने और लड़कियों द्वारा अश्लील तरीके से दी गयी गालियों को ही स्त्री स्वतंत्रता का पैमाना मान लेते हैं।
कुछ दिनों से कई शब्द जम चुके हैं, जो दूसरे अर्थों में अनूदित हो रहे हैं और उन्हें बहुत गलत तरीके से समझा जा रहा है, जिनमें से एक शब्द है बोल्डनेस! कई बार खुद से पूछिए कि बोल्डनेस क्या है? फ़िल्म का विरोध करनेवाले वैसे पति हैं, जो अपनी पत्नी से सिर्फ बैडरूम पर अश्लील हरकतें करते हैं और दूसरे की पत्नी को बोल्डनेस देखना चाहते हैं!