एक पत्र जांबाज साथियों के नाम
परम आदरणीय मार्गदर्शक महोदय एवं हमारे जांबाज साथियों !
आज ‘आपदा प्रबंधन’ कोर्स का समापन सत्र है, ऐसे में हमें सिर्फ यही कहना है कि आपदा प्रबंधन एक ऐसी कार्य प्रणाली है, जो आपदा से पहले और उसके बाद ही नहीं बल्कि एक-दूसरे के समानांतर भी चलती रहती है।
इस व्यवस्था में यह मानकर चला जा सकता है कि आपदा संभावित समुदाय के भीतर, आपदा की रोकथाम, उसके दुष्प्रभाव को कम करने, जवाबी कार्यवाही और सामान्य जीवन स्तर पर लौटने के लिए पर्याप्त उपाय होते हैं। किसी भी देश में प्राय: बाढ़, भूस्खलन, हिमस्खलन, चक्रवात, भूकंप, सुनामी की घटनाएं होती रहती है।
आपदा प्रबंधन इनके प्रभाव को कम करने के लिए एक सतत प्रक्रिया है, जिसे सफल बनाने के लिए सामूहिक एकता एवं समन्वित प्रयासों की आवश्यकता होती है। ज्ञात हो, विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं का पूर्व अनुमान नहीं लगाया जा सकता, ना ही इन्हें रोका जा सकता है, परंतु इनके प्रभावों को एक सीमा तक जरूर कम किया जा सकता है, जिससे कि भौतिक एवं मानवीय क्षति कम की जा सके। यह कार्य तभी किया जा सकता है, जब सक्षम रूप से आपदा प्रबंधन का सहयोग मिले।
यदि इस कार्य में आपदा प्रबंधन का सहयोग ना मिले, तो कार्य सुचारु रुप से नहीं चल सकता है। वहीं मानवनिर्मित आपदाओं में मनुष्य जब खुद के स्वार्थ के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ करता है, तब यह प्रभाव प्रकृति के लिए विनाशकारी हो जाते हैं। आपदाओं की उत्पत्ति का संबंध मानव कार्यों से भी है। कुछ मानवीय गतिविधियां तो सीधे रुप से इन आपदाओं के लिए उत्तरदायी है।
ऐसे कोर्स का आज समापन सत्र है और हम सब यह वादा करते हैं कि टीमवर्क के रूप में ऐसे आपदाओं अथवा विपदाओं से हम निजात पाने के लिए भलीभाँति से प्रबंधन को न सिर्फ अमलीजामा पहनाएंगे, अपितु अचानक की जरूरतों पर त्वरित कार्यवाही करेंगे। जय हिंद।