/ रूक गयी वह आशा /
जीने के लिए वह दौड़ता था
इधर – उधर, कहीं दूर
ना था उसे अपने खान – पान का सुध
और न वह आराम से
एक जगह बैठता था
यह उसकी नियति थी
आज एकाएक वह चला गया
इस दुनिया से,
अपने बच्चों के प्यार से
वह बहुत दूर चला गया
करोना बीमारी ने अलग कर दिया उसे
अपनी जिंदगी के दौड़़ से,
सबके साथ खड़े होने की आशा से
सुबह चार – पाँच बजे से
वह दौड़ना शुरू करता
रात नौ – दस बज़े को
घर वापस आता था
परिवार उसकी दौड़़ पर टिकी थी
निराशा छा गयी उस घर में,
उसकी बीबी एक कोने में
ढ़ेर होकर गिर गयी थी
भाई – बंधु सब जन दूर भागे
करोना के डर से,
नन्हें मुखड़े आज
अपने पापा की आहट का
इंतजार करने लगे,
बार – बार गली में झांककर देखने लगे,
शून्य के कब्जे में
कई घंटे…
घर एकदम सन्न रह गया
अपनी माँ की उस अचेतन गोद में
नादान बच्चे हताश होकर
आज बैठने लगे थे।