भारत में योग की परम्परा और भविष्य
भारत में योग की अवधारणा
भारतीय परम्पराओं संस्कृति सभ्यता और प्रचलित मान्यताओं के परिप्रेक्ष्य में सृष्टि के आरम्भ के साथ ही सृष्टि के आदि पुरुष आदि योगी भगवान शिव से योग का आरम्भ होता है।उसके बाद सप्तर्षि आदियोगी से मिले इस ज्ञान को संसार में फैलाते हैं।इसी के साथ आदि ग्रन्थ ऋग्वेद योग का सर्वप्रथम उल्लेख करता है।उसके अनुसार योग व्यक्ति की चेतना को ब्रह्माण्ड की चेतना से जोड़ता है।योग तन मन मानव व प्रकृति के मध्य पूर्ण सामंजस्य का सेतु है।अथर्ववेद में संयासियों का एक समूह शरीर के विभिन्न आसनों का महत्व समझाता है जो कालान्तर में योग के रूप में विकसित हुआ।याज्ञवल्क्य गार्गी संवाद में योग की चर्चा है।गार्गी छांदोग्यपिनषद के आधार पर योग की बात करती है।इसके अलावा अन्य वेद उपनिषद ब्राह्मण आरण्यक पुराण रामायण महाभारत तप ध्यान कठोर आचरण से तन मन को अनुशासित रखने वाले ऋषि मुनियों के ज्ञानविज्ञान से भरे पड़े हैं।
योग का इतिहास और ग्रन्थ
भारतीय उपमहाद्वीप में जन्मी चरमोत्कर्ष तक पहुंचीं सिन्धु हड़प्पा और मोहन जोदड़ों की सभ्यताएं जोकि 3300 ईसापूर्व की हैं में मिले सिक्के अन्य अवशेष उनपर बनी आकृतियां भगवान पशुपति की योगमुद्रा की आकृति इस बात का साक्ष्य हैं कि यहां पर योग के विविध रूप थे।केरल वेर्नर लिखते है- पुरातात्विक खोज हमें अनुमान करने का समर्थन करता है की आर्य भारत के पूर्व के लोग योग शास्त्र की क्रियाओं से परिचित वेद व्यास ने अपने व्यासभाष्य में योग की चर्चा की।श्रीमद्भगवत गीता ने योग: कर्मसु कौशलम् कहा।यहां कर्म ज्ञान और भक्ति योग की बात प्रमुखता से है दुःख,सुख लाभ,अलाभ शत्रु,मित्र, शीत और उष्ण आदि द्वन्दों में सर्वत्र समभाव रखना योग है।स्वंय नायक श्रीकृष्ण अपने युग के सर्वश्रेष्ठ कर्मयोगी थे।घेरण्डसंहिता में सात अंग, षटकर्म आसन मुद्राबन्ध प्राणायाम ध्यान समाधि जबकि योगतत्वोपनिषद में आठ अंगों का वर्णन है यम,नियम,आसन,प्राणायाम, प्रत्याहार,धारणा,ध्यान,समाधि।सांख्यदर्शन में पच्च्चीस तत्वों का वर्णन मिलता है।उसके अनुसार. पुरुषप्रकृत्योर्वियोगेपि योगइत्यमिधीयते।अर्थात् पुरुष एवं प्रकृति के पार्थक्य को स्थापित कर पुरुष का स्व स्वरूप में अवस्थित होना ही योग है।विष्णुपुराण के अनुसार योगः संयोग इत्युक्तः जीवात्म परमात्मने अर्थात् जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है।आचार्य हरिभद्र के अनुसार मोक्खेण जोयणाओ सव्वो वि धम्म ववहारो जोगो मोक्ष से जोड़ने वाले सभी व्यवहार योग है।बौद्ध धर्म के अनुसार कुशल चितैकग्गता योगः अर्थात् कुशल चित्त की एकाग्रता योग है।योग की उच्चावस्था समाधि, मोक्ष, कैवल्य आदि तक पहुँचने के लिए अनेक साधकों ने जो साधन अपनाये उन्हीं साधनों का वर्णन योग ग्रन्थों में समय-समय पर मिलता रहा।उसी को योग के प्रकार से जाना जाने लगा।योग की प्रामाणिक पुस्तकों में शिवसंहिता तथा गोरक्षशतक में योग के चार प्रकारों का वर्णन मिलता है।भारतीय छ: दर्शनों सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदान्त में से एक योग है।पतंजलि का योगभाष्य,वेदव्यास का योगभाष्य, वाचस्पति मिश्र का तत्व वैशारदी, याज्ञवल्क्य का योग याज्ञवल्क्य, राजा भोज का भोजवृत्ति, गुरु गोरखनाथ का गोरक्ष शतक, विज्ञान भिक्षु का योग वार्तिक व योगसार,स्वामी स्वात्माराम का हठयोग प्रदीपिका,गणेश भावा का सत्तवृत्ति, नागेशभट्का योगसूत्रवृत्ति,रामान्दयति का मणिप्रभा,नारायणतीर्थ का सूत्रार्थप्रबोधिनी, घेरेण्डमुनि की घेरण्ड संहिता, जयतराम की जोगप्रदीपिका, स्वामीसत्यपति परिव्राजक का योगदर्शनम्,मन की शक्तियां तथा जीवनगठन की साधनायें स्वामीविवेकानन्द, लाइट आन योग केएस लेयंगर, योग सूत्र स्वामीसच्चिदान्द व द सेवन स्पिरियुअलबाज आफ योग दीपक चोपड़ा का ग्रन्थ योग पर चर्चा करते हैं।
महर्षि पतंजलि और योग
महर्षि पतंजलि ने अपने योगभाष्य में जिस तरह से योग का विस्तार से उल्लेख किया है उनसे पूर्व दुर्लभ है।जहां पतंजलि ने जैनियों की पांच प्रतिज्ञाएं, बौद्धों के योगाचार सम्मिलित किए हैं वहीं सांख्यवादियों के विचार भी है।वास्तव में चित्त की चंचलता को रोककर मन को भटकने से रोकना ही योग है जो आगे चलकर यम, नियम, आसन, प्रणायाम, प्रत्याहार धारणा, समाधि आदि मुद्राओं के रूप में बदल गया।जिससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार, तनाव से मुक्ति, शारीरिक,मानसिक,क्षमताओं का विकास, शरीर में लचीलापन आता ही है।अनेक आधि-व्याधियों,महामारियों से लड़ने जीतने के द्वार खुलते हैं।महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्रों के माध्यम से योग की एक-एक सूक्ष्मता पर ध्यान केन्द्रित किया जो आठवीं शती तक संसार में गूंजता रहा।विदेशी विद्वानों ने आकर स्वीकारा।इसी योग को उन्नीसवीं सदी में स्वामीविवेकानंद ने अज्ञानता के बादलों को हटाने वाला बताया।स्वामी दयानन्दसरस्वती स्वंय योग करते थे।
योगगुरु व वर्तमान में योग
योग गुरुओं की बात करें तो आदियोगीमहादेव,आदिशंकराचार्य,रामानुजाचार्य, माधवाचार्य, सुदर्शन, तुलसीदास, पुरंदरदास, मीराबाई, मत्येन्द्रनाथ, गोरखनाथ, गौरांगीनाथ, स्वात्मायराम सूरी, घेरांडा, श्रीनिवासभट्ट, बीकेएसअसंगर, स्वामीशिवानन्द, पट्टाभिजोइस, स्वामी स्वरूपानन्द, स्वामी विष्णुदेवानन्द, टीकेवीदेसीकाचर, स्वामी कुवलयानन्द, श्री योगन्द्र, स्वामी शुकदेवानन्द,सन्त रविशंकर व बाबा रामदेव का नाम लिया जा सकता है।
बीसवीं सदी में आज योग जिस रूप में जनजन तक है देश विदेश में है।शरीर का लगभग हर आधि और व्याधि का समाधान दिखाता है।प्रातः काल जगह-जगह योग करते लोग व अनेक टेलीविजन चैनलों पर इसके आयोजन दिखते हैं।सबसे बड़ी बात आज जो योग के प्रति विश्वास दिखता है उसका श्रेय पिछले एक दशक से बाबा रामदेव के प्रयासों को है।उनके समर्पण इसके लिए त्याग को है।उसके बाद नाम आता है वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी का,जिन्होंने सत्ता संभालते ही योग पर ध्यान केन्द्रित किया तथा संयुक्त राष्ट्र संघ में ठोस पैरवी की।
अपने इतिहास में पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रत्येक वर्ष इक्कीस जून को विश्व योग दिवस मनाने की मान्यता दी और प्रथम विश्वयोग दिवस इक्कीस जून 2015 को मनाया गया।जिसमें 47 मुस्लिम देशों सहित कुल 192 देशों ने भागीदारी कर भारत की शान पहचान योग का डंका सम्पूर्ण विश्व में बजवा दिया।इस दिन अकेले दिल्ली के आयोजन में 35985 लोगों ने योगाभ्यास किया।84 देशों के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की।दो दो विश्व रिकार्ड बने।तब से हर साल 21 जून को विश्व योग दिवस मनाया जा रहा है साथ ही इसकी व्यापकता स्वीकार्यता तेजी से बढ़ रही है।आज भारत ही नहीं अपितु दुनियां का लगभग हर बच्चा युवा और वृद्ध योग से परिचिति है।हर तरह की चिकित्सा पद्धति वाले दबी जुबान से ही सही पर योग की महत्वता मान रहे हैं।
योग प्रशिक्षक व संस्थान
योग शिक्षकों की बात करें तो अकेले भारत में ही तीन लाख से अधिक हैं।विदेशों में भी बड़ी संख्या है।अकेले अमेरिका में उन्नीस लाख से अधिक लोग प्रतिदिन योग करते हैं।देश में अनेक योग संस्थान हैं जो अपना योगदान दे रहे हैं।जिनमें राममनी अय्यंगार स्मारक योग संस्थानपुणे, आष्टांगयोगरिसर्चइंस्टीट्यूटमैसूर, सिवानंदयोगवेदांतधन्वंतरीआश्रमत्रिवेंद्रम, कृष्णामाचार्ययोगमंदिरमचेन्नई, परमार्थनिकेतनऋषिकेश, कैवल्यधामयोगसंस्थानलोनावालामहाराष्ट, सांताक्रूज योगसंस्थान, पतंजलियोगपीठ, कृष्णामाचार्ययोगमंदिर, बिहार स्कूल ऑफ योगा, आर्ट आफ लिविंग आदि का नाम लिया जा सकता है।
योग का लक्ष्य
योग का स्वास्थ्य में सुधार से लेकर मोक्ष;आत्मा को परमेश्वर का अनुभवद्ध प्राप्त करने तक है।जैन धर्म अद्वैत वेदांत के मोनिस्ट संप्रदाय और शैव सम्रदाय के अन्तर में योग का लक्ष्य मोक्ष का रूप लेता है, जो सभी सांसारिक कष्ट एवं जन्म और मृत्यु के चक्र;संसारद् से मुक्ति प्राप्त करना है, उस क्षण में परम ब्रह्मण के साथ समरूपता का एक एहसास है। महाभारत में योग का लक्ष्य ब्रह्मा के दुनिया में प्रवेश के रूप में वर्णित किया गया है, ब्रह्म के रूप में अथवा आत्मन को अनुभव करते हुए जो सभी वस्तुओं मे व्याप्त है मीर्चा एलीयाडे योग के बारे में कहते हैं कि यह सिर्फ एक शारीरिक व्यायाम ही नहीं है, एक आध्यात्मिक तकनीक भी है।सर्वपल्लीराधाकृष्णन लिखते हैं कि समाधि में शामिल वितर्क, विचार, आनंद और अस्मिता शामिल हैं ।
निष्कर्ष
वास्तव में भारत में योग सृष्टि के आदि पुरूष से अब तक अपनी गरिमा को गुंजायमान कर रहा है।सम्पूर्ण स्वास्थय का द्वार खोलने वाला योग करने वालों में प्रतिरोधक क्षमता हर तरह की ऊर्जा में वृद्धि, बेहतर अर्न्तज्ञान विकसित करने से उपादेय तो था ही अपने आपको कारोना महामारी से लड़ने उस पर विजय पाने के लिए लोग नियमित रूप से योग करने लगे हैं।योग की क्रियाओं में कपालभाति, अनुलोम विलोम भस्त्रिका और मकरासन का महत्वपूर्ण योगदान कारोना के विरुद्ध लड़ाई में है।साथ ही भारत की परम्परा से जुड़ा उसकी आन बान और शान योग का भविष्य अब अतिउज्ज्वल है यह कहने में कोई संकोच नहीं है।
— शशांक मिश्र भारती