योग्यता का विस्तार
योग्यता का विस्तार
कहां तक हो पाता
सामंजस्य का अपना
अधिकार कहां तक हो पाता
जीवन की पाठशाला में
सपनों की मधुशाला में
कर्तव्यों का निर्वाहन
साकार कहां तक हो पाता
कार्यों की सीमा का
परिवहन करता समाज
परस्पर वेदना पर सबका
विचार कहां तक हो पाता
मुझको सर्वस्व समझ
औरों को तुच्छ प्राणी
जीवन मृत्यु के मध्य
अहंकार कहां तक हो पाता
वशीभूत हुए आदर्शों पर
लोभ ने पाप कराया
अत्याचार की सीमाओं पर
विचार कहां तक हो पाता
अग्रिम आने की होड़ में
विगत वर्ष छोड़ आए
अनुभव की पारदर्शिता का
प्रचार कहां तक हो पाता
टुकड़े-टुकड़े कर भावों का
तो फिर जोड़ने को कहते
असंगत परिस्थिति बदलने मैं
प्रहार कहां तक हो पाता
अनंत विचारों की बलि
चढ़ा के दिन–प्रतिदिन
स्वयं के शत्रुओं से नित
संहार कहां तक हो पाता
— प्रणाली श्रीवास्तव