‘हिंदी की गूँज’ द्वारा सृजनात्मक कार्यशाला का ऑनलाइन आयोजन
नई दिल्ली – “साहित्य शब्द स+हित से बना है, जिसका अर्थ है – हित सहित। इसलिए पाठक, श्रोता या दर्शक के उन्नयन, उदात्तीकरण, मार्गदर्शन, संवेदनशील मानव बनाने के लिए प्रयत्नशील रचना ही साहित्य कहलाने की अधिकारी है। गद्य हो या पद्य, दोनों पर यह कसौटी लागू होती है। सामान्य व्यक्ति और साहित्यकार में सूक्ष्म निरीक्षण दृष्टि और संवेदनशीलता का ही अंतर होता है। सामान्य मनुष्य जिन स्थितियों, घटनाओं, समाचारों को देखकर अनदेखा कर देते हैं, साहित्यकार उन्हीं से अपने लिए सामग्री जुटा लेता है। साहित्य रचना के लिए प्रतिभा, व्युत्पत्ति और अभ्यास का महत्त्व निर्विवाद है। साहित्य केवल समाज का दर्पण ही नहीं होता, अपितु ऐसा दर्पण होता है, जिसमें ‘जो होना चाहिए’ वह भी दिखाई दे। भौतिक प्रगति और वैज्ञानिक यांत्रिकता के दौर में केवल कविता ही मनुष्य की मनुष्यता को बचाए रख सकती है। छंदबद्ध कविता लिखने के लिए साधना आवश्यक है, जबकि छंदमुक्त कविता लिखना सरल मान लिया गया है। वास्तव में, छंदमुक्त कविता में सपाट बयानी, गद्यात्मकता के ख़तरे अधिक हैं। इस प्रकार की कविताओं में क्रियाओं का न्यूनतम प्रयोग, विराम-चिह्नों का सजग-सार्थक-सटीक प्रयोग, लय, प्रवाह, आरोह-अवरोह अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है। कौन सी रचना कालजयी हो जाएगी, यह रचनाकार को भी नहीं पता होता, समय ही इसे तय करता है।युवा रचनाकारों को शीघ्र रचना प्रकाशन, प्रशंसा, पुरस्कार की लालसा से बचना चाहिए। रचनाकार के व्यक्तित्व में कथनी और करनी में अंतर जितना कम होगा, उसकी रचना का प्रभाव उतना ही अधिक होगा। इसलिए सदैव सकारात्मक सोच, संवेदनशीलता, निस्वार्थ भावना, सबके सुख की कामना जैसे भावों से युक्त साहित्यकार की रचना में ये बातें स्वाभाविक रूप से अभिव्यक्ति पाती हैं, दूसरों को प्रभावित करती हैं, उनके मन को छू जाती हैं। अतः साहित्य रचना में प्रवृत्त होने वाले युवाओं को इन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।” ये शब्द ‘हिंदी की गूँज’ संस्था द्वारा ऑनलाइन आयोजित ‘सृजनात्मक कार्यशाला’ में मुख्य अतिथि डॉ. रवि शर्मा ‘मधुप’ ने युवा रचनाकारों को कहे।
हिंदी के प्रचार-प्रसार को समर्पित देश की अग्रणी साहित्यिक संस्था ‘हिंदी की गूँज’ के तत्त्वावधान में आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत में खेमेंद्र सिंह ने कार्यशाला की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कार्यशाला में उपस्थित सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया। रजनी श्रीवास्तव के मधुर स्वर में सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। दो सत्रों में संपन्न हुई कार्यशाला के प्रथम सत्र में कविता-लेखन की विधि, शब्द-चयन, कविता की विषयवस्तु आदि पर प्रकाश डालते हुए वरिष्ठ साहित्यकार नरेंद्र सिंह ‘नीहार’ ने विद्यार्थियों तथा नवांकुरों को प्रेरक मार्गदर्शन दिया। उन्होंने कहा कि कविता लिखने के लिए आवश्यक तत्त्व हैं – भाव, शब्दकोश और पर्यायवाची शब्दों की जानकारी। द्वितीय सत्र में चर्चित कहानीकार रोचिका शर्मा ने कहानी के महत्त्व और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में लिखी जाने वाली कहानी तथा उसमें किस तरह के शब्दों का प्रयोग होना चाहिए आदि बातों पर जानकारी दी। उन्होंने अपनी कहानी “सेकेंड वेव” सुनाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम का कुशल संचालन तरुणा पुंडीर ‘तरुनिल’ तथा डॉ. ममता श्रीवास्तव ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में जुडे श्री राम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर रवि शर्मा ‘मधुप’ जी ने साहित्य रचना के महत्त्व को बताते हुए नवोदित रचनाकारों को कई महत्त्वपूर्ण सूत्र दिए।
अहिंदीभाषी क्षेत्र मैसूर के कॉलेज-विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से आयोजित ऑनलाइन ‘सृजनात्मक कार्यशाला’ में देश के विभिन्न क्षेत्रों के विद्यार्थी तथा नवांकुरों ने भाग लिया। सभी ने तरह-तरह के प्रश्न पूछकर अपनी जिज्ञासा को शांत किया एवं जागरूकता का परिचय दिया। इस अवसर पर उपस्थित उत्तराखंड शाखा प्रभारी निर्मला जोशी, गिरीश जोशी, संजय कुमार सिंह, तापस अग्रवाल, डॉ. चित्रा एस., डॉ. सिध्दगंगमा, राकेश जाखेटिया, दीपक अग्रवाल आदि ने अपने संदेश प्रेषित कर सभी का उत्साहवर्धन किया। ‘हिंदी की गूँज’ के मीडिया प्रभारी प्रमोद चौहान प्रेम ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। अंत में नरेंद्र सिंह ‘नीहार’ व खेमेन्द्र चंद्रावत ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए करीब तीन घंटे से अधिक चले कार्यक्रम के समापन की घोषणा की।