चिंता
एक मां ही है जो सब सह जाती है
उसको ही चिंता सबकी सताती है,
खो कर सुध वह अपनी सारा दिन
अपना प्यार अपनी फ़िक्र से जताती है।।
जब कुछ घर में घटित होता है
उसकी चिंता मां को ही सताती है,
रखती है सारा हिसाब किताब
एक मां घर को स्वर्ग बनाती है।।
अपनी छोटी-छोटी इच्छाओं को
एक मां कभी नही बतलाती है ,
खुद की कभी परवाह नहीं करती जो
मां की यही चिंता मां को मां बनाती है।।
आज जब मैं मां बनी हूं तब मुझे भी
मां की फ़िक्र बहुत सताती है
सोचती हूं एक मां बनकर ही
मां की चिंता समझ आती है।।
— प्रतिभा दुबे