बोधकथा

देहाती दुनिया

दुनिया को ‘आँचलिकता’ से रूबरू करानेवाले हिंदी के पहले उपन्यासकार शिवपूजन सहाय थे। उनकी औपन्यासिक कृति ‘देहाती दुनिया’ की प्रथम पांडुलिपि लखनऊ में गायब हो गई थी, फिर उन्होंने ‘देहाती दुनिया’ की दूसरी पांडुलिपि लिखा, किन्तु संतुष्ट नहीं होने के बावजूद 1926 में यह उपन्यास प्रकाशित होते ही छा गया।

देहात, बज्जिका तथा ‘और भी स्थानीय भाषा’ सहित साम्प्रदायिक सद्भाव का उन्नत और उत्तम मिसाल लिए ‘देहाती दुनिया’ पहला आँचलिक उपन्यास है, जबकि फणीश्वरनाथ रेणु की ‘मैला आँचल’ 1954 में प्रकाशित हुई थी, वो तो लेखकीय गुटबाजी के कारण व डॉ. धर्मवीर भारती से मिली प्रशंसा से ही ‘मैला आँचल’ ने ‘देहाती दुनिया’ की आँचलिकता को खारिज कर दिया ! जबकि ‘देहाती दुनिया’ हिंदी का प्रथम आँचलिक उपन्यास है।

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.