लघुकथा : अख़बार में नाम
आशालता अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से घिरी अखबार की एक एक कतरन निकालकर दिखा रही थी। कई अखबारों में उसकी तस्वीर के साथ रचनाएं छपी थी। उसका नाम और पता भी था।
“दीदी एक अखबार में मेरा भी फोटो छपवा दो न, किसी की रचना के साथ” कम उम्र की एक लड़की ने कहा। उसकी बात सुन आशा जी चौंकी और कहा, “क्या फालतू की बात करती हो।”
लड़की ने अपने मोबाइल को ऑन किया और दिखा दिया कि आशालता ने किसी दूसरे की रचना अपने नाम एक अखबार में छपवा ली है, रचना के मूल लेखक ने एक समूह में इसकी शिकायत की है। अब आशा जी का चेहरा देखने लायक था।
— निर्मल कुमार दे