ग़ज़ल
काले दिल वालों से ख़तरा,
दुश्मन की चालों से ख़तरा।
जिनके भीतर जंग लगी है,
बंद पड़े तालों से ख़तरा।
घर में रहें विभीषण जैसे,
ऐसे घर वालों से ख़तरा।
तन के गोरे मन के काले,
गिरगिटिया खालों से ख़तरा।
पीकर दूध ज़हर ही उगलें,
दाढ़ी के बालों से ख़तरा।
शांतिदूत के परचम – वाहक,
पापी परकालों से ख़तरा।
‘शुभम’ मुखौटे वाले धोखे,
छिपे हुए गालों से ख़तरा।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’