अलविदा
प्यार की हर नज़र हर खुशी देख ली,
यार की रहगुज़र खुदकुशी देख ली।
एक लम्हें में हम हो गए अजनबी,
इश्क़ का खेल संजीदगी देख ली।
शौक था वो तबस्सुम बने ज़ीस्त अब,
आज रोती हुई जिंदगी देख ली।
दिलजिगर चाककर जानकरके फना,
संगदिल की सनम दिल्लगी देख ली।
आज सजदे इबादत हुए बेअसर,
रहनुमाई खुदा बंदगी देख ली।
दीद नाजुक कली हसरतें ही रहीं,
आज दिल में बसी सादगी देख ली।
यार की रहगुज़र खुदकुशी देख ली।
एक लम्हें में हम हो गए अजनबी,
इश्क़ का खेल संजीदगी देख ली।
शौक था वो तबस्सुम बने ज़ीस्त अब,
आज रोती हुई जिंदगी देख ली।
दिलजिगर चाककर जानकरके फना,
संगदिल की सनम दिल्लगी देख ली।
आज सजदे इबादत हुए बेअसर,
रहनुमाई खुदा बंदगी देख ली।
दीद नाजुक कली हसरतें ही रहीं,
आज दिल में बसी सादगी देख ली।
प्यास से मैं मरा पी रहा साक़िया,
मुस्कुरा कर कहा तिश्नगी देख ली।
वो जमाने को रोते दिखे कब्र पर,
जान पाए न हमने हंसी देख ली।
अलविदा ! ऐ जहां, अब नहीं लौटना,
जाते जाते तेरी दिलकशी देख ली।
मुस्कुरा कर कहा तिश्नगी देख ली।
वो जमाने को रोते दिखे कब्र पर,
जान पाए न हमने हंसी देख ली।
अलविदा ! ऐ जहां, अब नहीं लौटना,
जाते जाते तेरी दिलकशी देख ली।
— पंकज त्रिपाठी कौंतेय