कविता

परोपकार

मैंने एक स्वप्न देखा है
संसार मानवता का
देश बन चुका है
दया भाव नेक नियत है
सभी मिलकर नित्य निरंतर
आखिरी जश्न मना रहे हैं
अंतिम भोज कर रहे हैं
प्यास बुझा रहे हैं भूख मिटा रहे हैं
खुशियां मना रहे है मद्दत कर रहे है
एक दूसरे को परोपकार कर रहे हैं ।
काश !
सहज, सरल, विनम्र, सच्चे
जिसमें सब इंसान हो
परोपकार की भावना से जहां
सब का ही कल्याण हो
‘मानस’ जग हितकारी पद्धति हो ।।
— मनोज शाह ‘मानस’ 

मनोज शाह 'मानस'

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