आपात काल की याद
25 जून 1975 को कुछ माह का था, इसलिए मैं लौहमहिला की लौहसत्ता से निःसृत ‘आपात’ कुव्यवस्था से अनभिज्ञ रहा, किन्तु अपने दादाजी और पिताजी से जरूर जाना कि तब लगभग 2 साल तक ‘कर्फ़्यू’ स्थिति लिए थी।
अखबार बंद था, रेडियो से महारानी इंदिरा और उनके कैबिनेट के अनुसार ही समाचार प्रसारित होती थी। चाय की दुकान ही नहीं, वहां फुसफुसाहटें बन्द थी। इसी क्रम में संजू (संजय गांधी) और उनकी बंशी (बंशीलाल) ने ‘नसबन्दी’ का ऐसा चक्रव्यूह चलाये कि कितने ही अविवाहितों का जबरदस्ती नसबंदी करा दिया गया।
नमक की आपूर्त्ति नहीं हो पा रही थी । साप्ताहिक हाट लगने बन्द हो गए थे । मेरे पिताजी के वेतन बन्द हो गए थे, घर की हालत निरीह ‘बकरी’ जैसी थी ! …. भय, भूख, कोख ….सब खाली ! कांग्रेस का यह काला चेहरा ! प्रियदर्शिनी कलंकिनी रूप ! प्रथम महिला प्रधानमंत्री की ऐसी भयावह रूप ! ‘1971’ में बनी लौह महिला की छवि ने सब खत्म कर दी …. विरोधियों को जेल, कोई बेल नहीं !
देश की जनता ने कांग्रेस और इंदिरा नेहरू गांधी को हराया, किन्तु नादान जनता का दिल 2 साल इंदिरा-बिछोह सह नहीं पाए और फिर इतना होने के बाद भी उन्हें पुनः प्रधानमंत्री बना दिए।
दुबारा ‘काला अध्याय’ की किसी भी क्षेत्र में पुनरावृत्ति न हो, हमें सतर्क रहना ही होगा !