कहैं मलय कविराय
आज दिखाई ना पड़ी, सुंदर गोरी नार।
उर व्याकुल देखे बिना, नैना हैं लाचार।।
नैना हैं लाचार, सुख-चैन हृदय न पाये।
मीत मिले तो कहें, हृदय की पीर दिखायें।
कहैं मलय कविराय, जीवन शुभ सुंदर साज।
कल होगा सुखद अति, मनमीत मिले जब आज।।
गोरी नैनन बांटती, तन-गागर रस मीठ।
यौवन अम्बर चूमता, चंचल दर्पण दीठ।।
चंचल दर्पण दीठ, लख पिय उर उपज उछाह।
मन व्याकुल मिलन को, कब पीर मिटे तन-दाह।।
कहैं मलय कविराय, मन चैन परत न थोरी।
विरह-मिलन की रीत, न समझत मुग्धा गोरी।।
— प्रमोद दीक्षित मलय