ग़ज़ल
मुझे तुमसे इतनी फ़क़त है शिकायत।
न भरपूर मुझको मिली तुमसे उल्फ़त।
है बाक़ी अभी देखना हमको हमदम,
कहाँ जा रुकेगी ये नाक़िस सियासत।
वो करते रहे हैं वो करते रहेंगे,
है हासिल उन्हें बस इसी में महारत।
नहीं बाल बाँका कोई कर सकेगा,
रहेगी जो यकजा बड़ी इक जमाअत।
लड़ा दुश्मनों से हमीद उस घड़ी तक,
रही जब तलक तन बदन में हरारत।
— हमीद कानपुरी