कविता

समझौता

समझौता क्या है
बस! सामंजस्य का तरीका है,
समझौते निरुद्देश्य नहीं होते
होते हैं तो उसके कारण भी होते हैं,
बिना कारण भला
समझौते कहाँ होते?
कारण नहीं होंगे तो भला
समझौते कहाँ महत्व पाते।
समझौते होते नहीं
हमें करने पड़ते हैं,
समय, काल ,परिस्थिति के अनुरूप
ढलने ही पड़ते हैं।
समझौतों का भी अपना मजा है
इससे जो सुकून मिलता
उसका अहसास सबसे जुदा है ।
बस हम सबको चाहिए इतना
कि समझौते की गुँजाइश बनी रहे,
जो हमेशा को खोने का डर है
कम से कम समझौते से ही
उसे अपने पास रहने की
उम्मीद तो हमेशा बनी रहे।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921