कविता

पपिहरा

सावन बरसे रिमझिम रिमझिम
फिर भी चमन है उदास रे
कैसी बून्दे बरसाया रे बदरिया
तन मन की ना बुझी प्यास रे

सावन बरसे रिमझिम रिमझिम
बैरन अँखियाँ है उदास रे
पपिहरा विरहा की गीत सुनाये
तन मन में लगी आग रे

सावन बरसे रिमझिम रिमझिम
नदियाँ बह रही बिन्दास रे
पूरवईया सुलगाये प्यार की अग्न अब
कौन बुझाये प्यास रे

सावन बरसे रिमझिम रिमझिम
दिल तड़पे दिन रात रे
कोई समझाये मेरे हमदम को
अकेले ना कट रही ये रात रे

सावन बरसे रिमझिम रिमझिम
आ जा बाँहों में प्रिये आज रे
जुल्फों में छुपा लो अब तुम हमको
कर दो प्रेम की बरसात रे

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088