भाषा-साहित्य

विष्णु प्रभाकर: हिंदी साहित्य का दैदीप्यमान नक्षत्र

ललित कला के क्षेत्र में साधनारत साधकों से जीवन में कोई एक ऐसी बेजोड़ कला कृति रच जाती है जो उसकी न केवल पहचान बन जाती है बल्कि दूसरों के लिए भी उस विधा विशेष में प्रकाश स्तम्भ हो जाती है। वह क्षेत्र चाहे साहित्य में कविता, कहानी, नाटक, जीवनी, यात्रावृत्त, डायरी, संस्मरण .. आदि का लेखन हो या चित्रकला का फलक। चाहे संगीत के मुक्त गगन में गूंजती स्वर लहरी, राग हो या फिर स्थापत्य में दिव्य मंदिर, भव्य प्रासाद एवं अट्टालिकाओं का सृजन। छेनी-हथौरी की चोट सहकर निर्मित कोई जीवंत प्रस्तर मूर्ति हो या फिर माटी सेे रचे-गये गये बोलते पुतले। कैमरे की रील पर विचार एवं कल्पना को साकार करतीं अपने समय की साक्ष्य दस्तावेज फिल्में हों या फिर निष्प्रयोज्य सामग्री से आकर्षक प्रेरक उपयोगी वस्तुओं का गढ़न। सैकड़ों-हजारों रचनाओं में कोई एक रचना साधक सर्जक की पर्याय हो जाती है। साहित्य की जीवनी विधा में ‘आवारा मसीहा’ एक ऐसी ही लोक प्रशंसित महत्वपूर्ण कृति है जो जीवनीकार विष्णु प्रभाकर का चित्र मानस पटल पर अंकित कर देती है। आवारा मसीहा और विष्णु प्रभाकर चीनी और जल की भांति परस्पर घुल गये हैं जो साहित्य प्रेमियों को शीतल मधुर शर्बत पिला ज्ञान पिपासा शांत कर तृप्त करते हैं, यह तृप्ति हृदय की है। आवारा मसीहा जीवनी विधा का अप्रतिम उदाहरण है जो प्रसिद्ध बांग्ला साहित्यकार शरतचंद्र चटर्जी की जीवन झांकी पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करती है। विष्णु प्रभाकर का रचना फलक विस्तृत एवं बहुआयामी है। उनको पढ़ते हुए पाठक स्वयं में विष्णु प्रभाकर को जीने लगता है। उनकी रचनाओं में गांधीवादी दर्शन के प्रति लगाव, आदर्शवाद, सांस्कृतिक चेतना, नैतिक मूल्यों की पक्षधरता, नर-नारी समानता, लोक के प्रति अनुराग, उत्कट देश प्रेम और एक आदर्श देश-समाज की रचना के भाव पगे-पगे प्रतिबिम्बित होते हैं। प्रभाकर जी का साहित्य पढ़ते हुए पाठक लेखक की अंगुली पकड़ साथ-साथ यात्रा पर चल पड़ता है। जहां कहानी, एकांकी, नाटक, उपन्यास, संस्मरण, बाल साहित्य के विविध रोचक-मोहक पड़ावों पर ठहरता और रचनाकर्म का आस्वादन एवं रसानुभूति करते हुए परमानंद को प्राप्त करता है। स्मरणीय है, विष्णु प्रभाकर का मूल नाम विष्णु दयाल है किन्तु एक प्रकाशक मित्र के आग्रह पर प्रभाकर शब्द जोड़ लिया था। वे सही मायनों में वह प्रभाकर ही हैं, जिन्होंने समूचे संसार को अपने लेखकीय प्रभा से चमत्कृत एवं आलोकित कर यथा नाम तथा गुण की उक्ति को सार्थक कर दिया है।
विष्णु दयाल का जन्म 21 जून 1912 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर के मीरापुर गांव में हुआ था। माता महादेवी एवं पिता दुर्गा प्रसाद धार्मिक प्रवृत्ति के शांत व्यक्ति थे। विष्णु की शुरुआती पढ़ाई गांव में हुई। आगे के अध्ययन हेतु विष्णु अपने मामा के यहां हिसार आ गये और वहीं से 1929 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। हिसार में एक नाट्यमंडली से जुड़ कई नाटकों में अभिनय भी किया। लेकिन परिवार की खराब माली हालत को देखते हुए विष्णु को पंजाब सरकार के कृषि विभाग में 18 रुपये मासिक वेतन पर एक चतुर्थ श्रेणी कर्मी के रूप में काम करना पड़ा। नौकरी के साथ ही आपने अंग्रेजी साहित्य में बी0ए0, हिंदी साहित्य में ‘प्रभाकर’ एवं ‘हिंदी भूषण’ तथा संस्कृत में ‘प्रज्ञा’ की उपाधि पंजाब विश्वविद्यालय से प्राप्त की। नई दिल्ली आने पर 1955 से 1557 तक आकाशवाणी में नाट्य निर्देशक के पद पर काम किया।
1931 में पहली कहानी ‘दीवाली के दिन’ ‘‘हिन्दी मिलाप’’ में छपी और खूब चर्चित हुई। विष्णु प्रभाकर जी ने हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं यथा कहानी, उपन्यास, नाटक, लघुकथा, एकांकी, यात्रा वृत्तांत, जीवनी, संस्मरण, आत्मकथा एवं बाल साहित्य में प्रचुर लेखन कर हिंदी साहित्यागार को समृद्ध किया। आपने साहित्य के छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नई कविता, नई कहानी जैसे युगीन कालखण्डों के आगमन-अवसान के साक्षी रहे हैं, पर आप किसी खास युग में बंधे नहीं।
विष्णु प्रभाकर मन में उठ रहे भावों को रोकते नहीं हैं बल्कि व्यक्त होने का पथ देते हैं। उनका मानना है, ‘‘शब्द अंदर रहते हैं तो सालते हैं, मुक्त हो जाते हैं तो साहित्य बन जाते हैं। जो नहीं देखा उससे हम आक्रांत क्यों रहते हैं? और जो भोगा है उसे छिपाते क्यो हैं?’’ वे भोगे यथार्थ की अभिव्यक्ति के पक्षधर हैं। प्रभाकर जी की भाषा शैली सरस, प्रवाहमय एवं लालित्यपूर्ण है। सीधे सरल शब्दों में अपनी बात कह कर वे पाठक के हृदय में उतर जाते हैं। वे शुद्ध संस्कृतनिष्ठ तम्सम शब्दों के मोह में नहीं पड़े हैं बल्कि सरल खड़ीबोली में संवाद करते हुए नजर आते हैं। पात्रों की सामाजिक स्थिति एवं वातावरण को ध्यान रखते हुए वह अंग्रेजी एवं उर्दू शब्दो के प्रयोग से भी नहीं हिचकते। इससे संवाद न केवल रुचिपूर्ण बन गये है बल्कि सहज सम्प्रेषणीय भी हो गये हैं। उनके लेखन में विविधता है, उसमें जीवन के कर्म एवं मर्म के मनोहारी रंग समाये हुए हैं। मानवीय संवेदना का निर्झर प्रवहमान है तो लोक जीवन की मिठास भी विद्यमान है।
विष्णु प्रभाकर की रचनाओं की एक लम्बी सूची है, कुछ पुस्तकों का विधावार विवरण इस प्रकार हैं – अर्धनारीश्वर, ढलती रात, धरती अब भी घूम रही है, होरी, पाप का घड़ा, एक और कुन्ती, निशिकान्त, तट के बंधन, आखिर क्यों (उपन्यास), मेरा वतन, खिलौने, संघर्ष के बाद, आदि और अंत, एक आसमान के नीचे (कहानी संग्रह), क्षमा दान, दो मित्र, घमंड का फल, सुनो कहानी (बाल साहित्य), टीपू सुल्तान, जगन्नाथ व्यास, शेख मोहम्मद जान, अष्टावक्र और मिस्टर स्मिथ (रेखाचित्र एवं संस्मरण), हत्या के बाद, नव प्रभात, प्रकाश औरा परछाईयां, गांधार की भिक्षुणी, अब और नहीं, डाॅक्टर, अशोक, सत्ता के आर पार, टूटते परिवेश (नाटक), ज्योतिपुंज हिमालय, जमुना गंगा के नैहर में (यात्रा वृत्तान्त), चलता चला जाऊंगा (कविता संग्रह) आवारा मसीहा, अमर शहीद भगत सिंह (जीवनी)। तीन भागों में प्रकाशित आत्मकथा (पंखहीन, मुक्त गगन में और पंछी उड़ गया) उनके जीवन संर्घष के विविध चित्र पाठकों के मध्य उपस्थित करती है। प्रभाकर जी को उनके लेखन के लिए प्राप्त सम्मान एवं पुरस्कारों में पद्य भूषण, महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, पाब्लो नेरूदा सम्मान, सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार, मूर्तिदेवी पुरस्कार, शलाका सम्मान, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का गांधी पुरस्कार, राजभाषा विभाग बिहार द्वारा राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान विशेष उल्लेखनीय हैं।
प्रत्येक व्यक्ति काल से बंधा होता है। जीवन पूर्ण कर उसे जाना ही होता है। 75 वर्षों से अनथक साहित्य साधनारत मां सरस्वती का यह तपःपूत साधक 11 अप्रैल 2009 को 96 वर्ष की आयु पूरी कर नई दिल्ली में अपने पाठको एवं शुभचिंतकों को अकेला विलखता छोड़कर अनंत की यात्रा पर निकल गया। आपकी वसीयत में लिखी इच्छानुसार आपकी पार्थिव देह अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को सौंप दी गयी थी। विष्णु प्रभाकर आज भले ही हमारे बीच नहीं है परन्तु उनकी रचनाओं की सुवास सदैव हमारे साथ रहेगी। वे साहित्य के ‘आवारा मसीहा’ के रूप में सदैव स्मरणीय रहेंगे।

— प्रमोद दीक्षित मलय

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - [email protected]