ग़ज़ल
अपना दिखाई दे न तो रिश्ता दिखाई दे ,
हर शख़्स अब तो भीड़ में तन्हा दिखाई दे ।
कहते हैं जिसको प्यार वो दिखता ही अब नहीं ,
इनसान अब तो ज़िस्म का भूखा दिखाई दे ।
उनकी खुशी के वास्ते हम दूर हो गए
उनको हमारी बात में धोखा दिखाई दे ।
पाने की थी न चाह न खोने का कोई डर ,
वो रूबरू मेरे सदा बैठा दिखाई दे
आँखों में तिश्नगी लिए वो ढूँढ़ता है कुछ।
अपने किसी वो ख़ास से बिछड़ा दिखाई दे ।