लघुकथा

आत्मा

“क्या यमराज आजकल तुम भी सुचारू रूप से अपना कार्य नही कर पाते हो, माना कि काम का लोड बढ़ गया है, किसी के बदले, किसी की आत्मा उठा लाते हो।”
“शरीर तो समाप्त हो गया था, पर चित्रगुप्त जी ने डिस्काउंट दिया, जाओ, वंदना 2 दिन का वक़्त है, अपने प्रियलोगों से एक मुलाकात कर आओ।”
और वो चल पड़ी, घर मे तीन दिन में पूजा पाठ सम्पूर्ण कर सारे सदस्य अपनी रोजमर्रा के काम मे लग चुके थे ।
देखा बेटा, बहू अपने अपने कामो में मस्त हैं, पोता टीवी में कार्टून देखने मे समय बिता रहा है । मेड, कुक आकर पूरी तरह से व्यवस्था देख रहे हैं । श्रीमान जी भी कभी किताबो में, फ़ोन में या फेसबुक में दिनभर दोस्तो और सखियों के साथ चैटिंग में व्यस्त हैं । पार्क में टहलने भी जाते हैं, वहां लाफिंग क्लब में समूह में हंसते भी है । कहीं भी वंदना को ये महसूस नही हुआ, कि कोई उसे याद कर रहा । 15 दिन पहले ही दिन रात यही सोचती रहती थी, चौबीसों घंटे मैं सबकी सेवा में लगी हूँ, ईश्वर ने बुला लिया तो यहां क्या होगा ! अब उसे यकीं हो गया, ये दुनिया यूँ ही चलती ही रहेगी, किसी के बिना किसी का काम नही रुकता । और चल दी स्वर्ग की ओर ।
— भगवती सक्सेना गौड़

*भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर