ग़ज़ल
रिमझिम कहलाए बादल की रानी आया नटखट सावन।
यह दुख सुख की लम्बी एक कहानी आया नटखट सावन।
सूखे टिब्बे नाले मारूस्थल के तन पर भी सुख छाया,
चारों ओर है मनहर पानी-पानी आया नटखट सावन।
दूर कहीं इन्द्रधनुष लहराए है सर-सर तेज़ हवाएं,
कुदरत की यह अनुपम सुखद निशानी आया नटखट सावन।
गुलशब्बो पर गुलचा करता जाए तेज़ हवा का झौंका,
काऐनात में छाई तुनक जवानी आया नटखट सावन।
काशतकारी की ख़ैरखवाही के सृजन में कौसर है,
निर्झर में है अंगीकार रवानी आया नटखट सावन।
झूले लेते हैं हिचकोले-अम्बर के हमजोली बन कर,
रोमांचित मौसम की आंख मसतानी आया नटखट सावन।
वातावरण में माधुर्यपूर्ण अभिवादन का संदेश मिले,
बाग़ में गाएं पक्षी मीठी बाणी आया नटखट सावन।
अनुपम भंवरी चित्रकारी अम्बर के दर्पण पर छा जाए,
बादल के गले में घुंघराली गानी आया नटखट सावन।
तेज़ अंधेरी की खुशमुख़तारी ने चिलमन को उठाया,
फिर तुम्हारी आई याद पुरानी आया नटखट सावन।
नखशिख सुन्दरता की किलकारी तृप्त करे है अंतरतम,
यह सब कुदरत की है मेहरवानी आया नटखट सावन।
गुलनार खिले कचनार खिले फूलों की सौहार्द सुगंध,
गुलशन के अभिनंदन में नूरानी आया नटखट सावन।
इसकी न कोई जाति पांति न कोई धर्म न झगड़ा,
सावन का सबसे है रिश्ता रूहानी आया नटखट सावन।
इतनी जिद्द भी ठीक नहीं है तू रौबीला छैल छबीला,
‘बालम’ वापस आ जा, आ गए जानी आया नटखट सावन।
— बलविन्दर ‘बालम’