कार्पेट
फिल्म के कामयाब होने की ख़ुशी में आज बहुत बड़ी पार्टी थी। नामीगिरामी फ़िल्मी सितारे, निर्माता – निर्देशक, फाइनैंसर और उद्योगपति पार्टी की शान बढ़ाए हुए थे। फिल्म की हीरोइन सुगंधा के पांव तो जैसे जमीं पर ही न थे। उसकी पहली ही फिल्म ने सफलता के झंडे गाड़ दिए थे। उम्मीद से कहीं ज्यादा सफलता मिली थी फिल्म को। सफ़ेद रंग की आधुनिक पोशाक में परी सी लग रही सुगंधा, सबके आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी।
“सुगंधा, सुनते हैं कि इस इंडस्ट्री में पर्दे पर आने से पहले लगभग सबको कास्टिंग काउच का शिकार होना पड़ा है। आपका इस बारे में क्या कहना है ?” जिज्ञासु रिपोर्टर ने पूछा।
“अगर आपमें काबिलियत है, तो बिना किसी कॉम्प्रोमाइज के भी आपको सफलता मिल सकती और इसी गुरुमंत्र को हथियार बना कर मैंने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी शुरुआत की है। ” नपे तुले शब्दों में मुस्कुरा कर सुगंधा ने जबाब दिया।
“हमारी हीरोइन बहुत टैलेंटेड है और मुझे नहीं लगता उसे किसी तरह के कोम्प्रोमाईज़ की ज़रुरत भी है।” सुगंधा की कमर में हाथ डालते हुए फिल्म का निर्देशक बोला। फोटो खिंचवाने के लिए सुगंधा खुद ही थोड़ा और करीब हो ली।
“सुगंधा जी, थोड़ी सुगंध इधर भी बिखेर दीजिए। ” तभी एक दूजा नामी निर्देशक, महत्वाकांक्षी सुगंधा के आगे कार्पेट की तरह बिछ गया ।
“सही कहते हैं गुरु कि इस इंडस्ट्री में कौन किसके लिए कार्पेट है, समझ ही नहीं आता।” भद्दी सी हंसी हँसते हुए जिज्ञासु रिपोर्टर उधर से चल पड़ा ।
— अंजु गुप्ता